मड़िहान के नक्सल प्रभावित गांव गढ़वा के ग्रामीण जंगल में जानवरों के पानी पीने के लिए खोदे गए गड्ढे से पानी पीने को मजबूर है। इस गांव में न तो हैंडपंप है न जल का कोई अन्य स्रोत। जंगलों में जानवरों को पानी के लिए गड्ढा खोदा जाता है। जिससे उस गड्ढे में पानी एकत्रित होता है और वही पानी जंगली जानवर के साथ गढ़वा गांव के ग्रामीण अपने पीने व घरेलू काम के लिए ला रहे है। इस तरह गंदा पानी पीकर यहां के क्षेत्रीय लोग हर दिन बीमार हो रहे है। अभी कुछ दिन बीते है मड़िहान के कई गांव डायरिया सहित अन्य रोगों की चपेट में आ गये थे। अब इस इलाके के लोगो को यह गंदा पानी पीना मजबूरी कहे या फिर जिला प्रशासन की लापरवाही। मगर भीषण गर्मी में सूख चुके जल स्रोतों के कारण मजबूरन यह पानी पीना पड़ रहा है। मड़िहान ही नहीं बल्कि लालगंज में लहुरियादह जैसे इलाके भी है जहां रहने वाले लोग पहाड़ से रिसने वाले बूंद बूंद पानी को इकट्ठा कर किसी तरह से जिंदगी जी रहे हैं।राष्टीय राजमार्ग से सटे व ड्रमलगंज की पहाड़ी पर मौजूद इस इलाके में पानी के लिए रात-रात भर जाग कर लोग पानी इकट्ठा करते हैं।
हालांकि पानी की समस्या को देखते हुए जिला प्रसाशन दो टैंकरों से लगातार इन इलाके में पानी की सप्लाई करवा रहा है। मगर यह पानी भी लोगों को तय मात्रा में मिलता है। स्थानीय घनश्याम और राजेंद्र का कहना है कि जिला प्रशासन को स्थायी समाधन की कोशिश करना चाहिए यह कब तक टैंकर और पहाड़ के सहारे जिंदगी जीने को मजबूर रहेंगे। फिलहाल पहाड़ी इलाकों में लगातार गिरते जल स्तर के कारण भी जिला प्रशासन ने छानवे लालगंज को क्रिटिकल जोन में डालकर चेतावनी दे दिया है। अगर स्थाई कोई समाधान नहीं निकला तो आने वाले वक्त लोगों के लिए परेशानियां बढ़ाएगा।
BY-Suresh Singh