राजपूत गहरवारों की ऐतिहासिकता को सर्वाधिक मान्यता दी जाती है
वे लोग यहां मत्था टेक एवं चादर चढ़ा कर अजमेर शरीफ के गरीब नवाज की कृपा प्राप्त कर लेते हैं। वैसे भी अजमेर शरीफ यात्रा शुरु करने से पहले या यात्रा पूर्ण करने के बाद भी जायरीन आते रहते हैं। कंतित शरीफ के इस्माइल चिश्ती के संबंध में यहां कई किंवदंतियां प्रचलित है। स्थानीय लोग इस्माइल चिश्ती के हैरतंगेज कारनामों को बड़े गर्व से बताते हैं। मोइनुद्दीन चिश्ती के भांजे इस्माइल चिश्ती के कंतित आगमन को लेकर कोई ठोस ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है पर जनश्रुतियों एवं राजपूत गहरवारों की ऐतिहासिकता को सर्वाधिक मान्यता दी जाती है।
वे लोग यहां मत्था टेक एवं चादर चढ़ा कर अजमेर शरीफ के गरीब नवाज की कृपा प्राप्त कर लेते हैं। वैसे भी अजमेर शरीफ यात्रा शुरु करने से पहले या यात्रा पूर्ण करने के बाद भी जायरीन आते रहते हैं। कंतित शरीफ के इस्माइल चिश्ती के संबंध में यहां कई किंवदंतियां प्रचलित है। स्थानीय लोग इस्माइल चिश्ती के हैरतंगेज कारनामों को बड़े गर्व से बताते हैं। मोइनुद्दीन चिश्ती के भांजे इस्माइल चिश्ती के कंतित आगमन को लेकर कोई ठोस ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है पर जनश्रुतियों एवं राजपूत गहरवारों की ऐतिहासिकता को सर्वाधिक मान्यता दी जाती है।
कंतित में गहरवार राजपूत राजाओं काा शासन था
मान्यता के अनुसार अवध राज्य के इस सूबे कंतित में कभी गहरवार राजपूत राजाओं का शासन था। इसी वंश वृक्ष में दानव राय नमक एक राजपूत शासन ने जनता में आतंक पैदा कर दिया था। इसी समय बाबा इस्माइल चिश्ती ने दाना राय के आतंक को अपने कारनामों से समाप्त कराया। तभी से जनता में उनके प्रति आदर एवं सम्मान का भाव पैदा हुआ और उन्हें देव दूत माना जाने लगा। गंगा के किनारे बेस इस गांव में राजपूत राजाओं के किला एवं बावली के भग्नावशेष विशेष इन जनश्रुतियों को पुष्ट करते हैं। पर्वतमाला की गोद में बस यह स्थल अपने चमत्कारों के साथ प्राकृतिक वैभव से परिपूर्ण है।
मान्यता के अनुसार अवध राज्य के इस सूबे कंतित में कभी गहरवार राजपूत राजाओं का शासन था। इसी वंश वृक्ष में दानव राय नमक एक राजपूत शासन ने जनता में आतंक पैदा कर दिया था। इसी समय बाबा इस्माइल चिश्ती ने दाना राय के आतंक को अपने कारनामों से समाप्त कराया। तभी से जनता में उनके प्रति आदर एवं सम्मान का भाव पैदा हुआ और उन्हें देव दूत माना जाने लगा। गंगा के किनारे बेस इस गांव में राजपूत राजाओं के किला एवं बावली के भग्नावशेष विशेष इन जनश्रुतियों को पुष्ट करते हैं। पर्वतमाला की गोद में बस यह स्थल अपने चमत्कारों के साथ प्राकृतिक वैभव से परिपूर्ण है।
संभवत: इसी कारण लोक प्रसिद्ध भी है ।इस दरगाह के पश्चिम में हिंदुओं का प्रसिद्ध शक्तिपीठ मां विंध्यवासिनी धाम अवस्थित है।उत्तर में मां जाह्नवी की धारा है। दक्षिण में विंध्य पर्वत माला की हरितिमा इसकी शोभा में चार-चांद लगा देते हैं। कंतित शरीफ हिन्दुओं और मुसलमानो मे समान रूप से लोकप्रिय है। राष्ट्रीय मिसाल भी। मान्यता के अनुसार आज भी बाबा की मजार पर पहली चादर स्थानीय कसरहट्टी मोहल्ला के एक कसेरा परिवार द्वारा चढ़ाई जाती है। इस चादर के चढ़ने के बाद उर्स मेला विधिवत शुरु होता है।