यह भी पढ़ेंः कोरोना से मौत के बाद श्मशान में शव लेकर खड़ी रही एंबुलेंस, 20 घंटे बाद हुआ अंतिम संस्कार, फिर चप्पा-चप्पा सैनिटाइज हैरत की बात ये है कि प्रशासन का पूरा फोकस इन्हें बार्डर पर रोकने में तो है, लेकिन इनके लिए कोई पुख्ता इंतजाम करने में नहीं। श्रमिक मनसुख राम ने बताया कि वह तीन महीने से वहां काम कर रहा था, पैसे खत्म हुए तो अपने घर लखीमपुर खीरी के लिए पैदल ही निकल गया। प्रशासन ने यहां रोक दिया, दो दिनों से यहां कैद हैं, न कोई खाने के लिए पूछने वाला न है पीने के लिए। यमुनानगर से आए राजेन्द्र कुमार ने बताया कि उन्हें बिहार के कटिहार जाना है। साइकिल से घर के लिए निकले थे पुलिस ने यहां रोक दिया। इसके बाद उन्हें इस स्कूल में भेज दिया गया। भीड़ में छोटे-छोटे बच्चों के साथ मौजूद महिला ने बताया कि वह पैदल ही उनके साथ अपने घर अमेठी जाने के लिए निकली, लेकिन पुलिसकर्मियों ने पहले शाहजहांपुर में रोका फिर गजरौला बार्डर पर। वहां से वापस भेज दिया गया तो शाहजहांपुर में पुलिसकर्मियों ने इस स्कूल में भेज दिया। मेरे दो छोटे छोटे बच्चे हैं दो दिनों से इन्हें भी कुछ खाने के लिए नहीं मिला है।
यह भी पढ़ेंः लॉकडाउन के बाद इस तारीख से शुरू होंगी विश्वविद्यालय की छूटी परीक्षाएं, किए गए कई बदलाव एक अन्य श्रमिक ने बताया कि पहले यहां 50 मजदूर थे लेकिन दो दिनों में भीड़ 350 तक पहुंच गई, इनके यहां रुकने की कोई व्यवस्था भी नहीं है। स्कूल के अधिकतर कमरे बंद हैं सब ऐसे ही जहां तहां पड़े हैं। सोशल डिस्टेंसिंग का भी कोई पालन नहीं हो रहा है। एसडीएम मवाना ऋषिराज ने बताया कि स्कूल में मजदूरों को रोकने का मामला उनके संज्ञान में नहीं है। वे इस बारे में तहसीलदार से बात करेंगे। उन्होंने बताया कि इस तरह से जो भी मजदूर किसी शेल्टर होम में रोके जा रहे हैं उनके खाने-पीने का पूरा इंतजाम किया जा रहा है। इन मजदूरों का भी किया जाएगा।