यह भी पढ़ेंः लॉकडाउन में शादी की 50वीं सालगिरह नहीं मना पा रहे थे, अचानक पहुंची पुलिस और दंपती को दिया ये तोहफा कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए लॉकडाउन में फंसे लोगों का पलायन अब भी जारी है। साधन नहीं मिलने के कारण ये लोग पैदल और साइकिलों से ही अपने घर जा रहे हैं। जिनमें बुजुर्ग, बच्चे, महिलाएं और युवा शामिल हैं। पलायन करने वालों में अधिकतर दिहाड़ी मजदूर हैं, जिनके सामने अब रोटी का संकट खड़ा हो गया है। इनका कहना है कि वे अब लौटकर नहीं आएंगे। गांव में चाहे जितना संकट झेलना पड़े। इतने साल हो गए यहां रहते, आज पता चला कि सिवाय खाने-पहनने के कुछ नहीं कमाया। जब पेट ही पालना था तो गांव में रहकर ही पाल लेते। इस लॉकडाउन की शुरुआत में कुछ दिन खाना मिला, लेकिन अब तो उसकी भी उम्मीद नहीं है। आखिर कोई कितने दिन तक खाना खिलाएगा। सरकार मजदूरों के लिए रोटी और प्रवासी श्रमिकों को उनके घर तक पहुंचाने के दावे तो कर रही है, लेकिन आज तक उनके पास तक नहीं पहुंची। मजदूर इमरान का कहना है कि वह पानीपत में हेल्पर का काम करता है। जौनपुर का रहने वाला है। अब उसके पास खाने के लिए कुछ नहीं बचा तो 500 रूपये में साइकिल लेकर अपने घर चल दिया। हरदोई का राजेश ने कहा कि मजदूरी छूटने के बाद कुछ दिन तक खाना मिला, लेकिन वह भी बंद हो गया। कुछ ही कहानी बब्बन, गुलाम साबिर समेत कई श्रमिकों की भी है।
यह भी पढ़ेंः मेरठ में कोरोना संक्रमण से 15वीं मौत, पीएसी के चार जवानों समेत मिले 12 नए मरीज गिरवी रखे गहने फिर मिली साइकिल मजदूरों का कहना है कि उनके पास साइकिल खरीदने के भी पैसे नहीं थे। गांव में परिजनों ने गहने गिरवी रखे और उन पैसों को खाते में डलवाया। तब जाकर ये लोग पानीपत में साइकिल का इंतजाम कर सके। मजदूरों का कहना है कि पानीपत के गांव आसनकला के सरपंच ने उनसे आधार कार्ड की फोटो कापी ले ली। उनसे कागजों पर साइन करा लिए, लेकिन न तो राशन दिया और न कुछ खाने के लिए रुपये दिए।