यह भी पढ़ेंः युवती के साथ रहने की जिद पर अड़ी उसकी सहेली, उसके परिजनों को दे दी यह धमकी यह भी पढ़ेंः मेरठ में पहली बार देखा गया एेसा जानवर, लोगों में मचा हड़कंप मेरठ की सात सीटों पर रखते है प्रभाव अन्य पिछड़ा वर्ग के वोट मेरठ की सभी सातों विधानसभा सीटों पर अपनी अच्छी दखल रखते हैं। मेरठ शहर सीट में हमेशा से सांप्रदायिक ध्रुवीकरण होता रहा है। यहां पर हारजीत का फैसला चंद हजार वोटों से होता है। इस सीट पर भी अन्य पिछड़ा वर्ग जाट सहित करीब आठ हजार वोटें हैं जो काफी निर्णायक साबित होती हैं। जब भी इस सीट पर ध्रुवीकरण हुआ भाजपा नुकसान में रही है। 2012 में भाजपा के डा. लक्ष्मीकांत वाजपेयी, सपा के रफीक अंसारी को मात्र साढ़े छह हजार वोटों से हराकर जीते थे करीब सवा तीन लाख वोटरों वाली इस सीट पर मुस्लिम सवा लाख, वैश्य करीब 70 हजार, ब्राह्मण लगभग 40 हजार, दलित वोटर 35 हजार, त्यागी 20 हजार समेत अन्य पिछड़ा वर्ग में आने वाली जाट बिरादरी और कुछ पंजाबी बिरादरी की आठ हजार वोटें हैं। मेरठ कैंट सीट इस सीट में भी यही स्थिति है। इस सीट पर 90 हजार वैश्य, 60 हजार पंजाबी, दलित 50 हजार, मुस्लिम 30 हजार, अन्य पिछड़ा वर्ग की 20 हजार वोटें हैं। यहां भी अन्य पिछड़ा वर्ग की 20 हजार वोटें बहुत प्रभावी है जीत-हार का समीकरण तय करने में। मेरठ दक्षिण सीट आधे से ज्यादा शहरी वोटरों वाली यह सीट 2012 के चुनावों में अस्तित्व में आई। इस सीट पर सर्वाधिक मुस्लिम हैं। इस सीट पर भी अन्य पिछड़ा वर्ग की करीब 15 हजार वोटें हैं।
यह भी पढ़ेंः जनेऊ धारण करने से इतनी बीमारियों से मिलता है छुटकारा, जानकर आप दंग रह जाएंगे यहां भी इनकी ही बड़ी मौजूदगी मेरठ की किठौर विधानसभा सीट पर 20 हजार अन्य पिछड़ा वर्ग की वोटें हैं। यहां पर जातीय समीकरणों पर ही हार-जीत का फैसला होता है। महाभारत की गाथा रही हस्तिनापुर सीट में भी अन्य पिछड़ा वर्ग के वोटों की संख्या करीब 22 हजार के आसपास है। जिनमें जाट अधिक हैं। मेरठ की सरधना सीट यूं तो ठाकुर बाहुल्य है, लेकिन यहां पर भी अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल जाटों की संख्या करीब 26 हजार है जो निर्णायक स्थिति में रहती है। 2012 में सुरक्षित से सामान्य सीट हुई सिवालखास पर जातिगत बंटवारे से ही हार-जीत तय होती आई है। इस सीट पर अन्य पिछड़ा वर्ग की 40 हजार वोटरों पर ही उम्मीदवार का भविष्य टिका रहता है।