मेरठ

Teacher’s Day 2018: भूगोल के प्रोफेसर डा. कंचन सिंह को आज भी याद है अपने गुरुजी की पढ़ार्इ गणित की पाइथागोरस प्रमेय

पुराने जमाने में अध्यापकों का छात्राें के प्रति होता था अटूट आैर विश्वास

मेरठAug 29, 2018 / 11:43 am

sanjay sharma

Teacher’s Day 2018: भूगोल के प्रोफेसर डा. कंचन सिंह को आज भी याद है अपने गुरुजी की पढ़ार्इ गणित की पाइथागोरस प्रमेय

मेरठ। टीचर्स डे यानी शिक्षक दिवस को लेकर देश-विदेश में प्रसिद्ध प्रोफेसर डा. कंचन सिंह की यादें कुछ अलग हैं। उनकी भूगोल विषय में शुरू से ही रुचि थी, लेकिन कक्षा छह में उनके गुरुजी की पढ़ार्इ हुर्इ गणित की पाइथागोरस प्रमेय आज भी याद है। मेरठ कालेज मेरठ में भूगोल विभागध्यक्ष रहे प्रोफेसर डा. कंचन सिंह अभी तक देश-विदेश के कर्इ विश्वविद्यालयों में भूगोल विषय पढ़ा चुके हैं, लेकिन अपने गुरुजी की यादें आज भी उनके जेहन में ताजा हैं। जिला बांदा के सरकारी स्कूल में कक्षा छह के छात्र कंचन ने बताया कि पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ार्इ होती थी। गुरुजी वंशराज शुक्ला द्वारा दी गर्इ शिक्षा आैर ज्ञान ने उन्हें नर्इ राह दिखार्इ। इन दिनों वह इथोपिया में शिक्षा दे रहे हैं।
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1962 की बातें आज भी हैं याद

प्रोफेसर डा. कंचन सिंह ने बताया कि जिला बांदा अंतर्गत एक कस्बा है राजापुर। बात 1962 की है, उन दिनों मैं कक्षा छह में पढ़ता था। स्कूल सरकारी था और पढ़ाई भी पीपल के पेड़ के नीचे ही अधिकांश होती है। हमारे प्रधानाध्यापक थे वंशरूप शुक्ला जो पास के ही छीबो गांव के रहने वाले थे। देखने में बाहर से जितने कड़क थे गुरू जी, भीतर से उतने ही नरम थे। उनकी पढ़ार्इ हुर्इ पाइथागोरस आज भी मुझे याद है। यह कहना है मेरठ कालेज से भूगोल विभागाध्यक्ष के रूप में सेवानिवृत हुए डा. कंचन सिंह का। डा. कंचन सिंह आज भारत ही नहीं विश्व में भी जाना माना नाम है। देश ही नहीं उन्हाेंने विदेश के भी कई देशों के विश्वविद्यालय में छात्रों को भूगोल विषय पढ़ाया। इन दिनों वह इथोपिया में छात्रों को भूगोल की शिक्षा दे रहे हैं। उनका कहना है कि आज वह जो भी हैं वह अपने गुरू पंडित वंशरूप शुक्ला जी की बदौलत हैं।
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प्रोत्साहन स्वरूप देते थे पुरस्कार

डा. कंचन सिंह का कहना है कि गुरू जी छात्रों को प्रोत्साहित करते थे। पंडित वंशरूप शुक्ला जी छात्रों को प्रोत्साहित करने के साथ ही उनको पुरस्कार भी दिया करते थे। उन्होंने बताया कि गुरू जी ने उन्हें कहा था कि अगर जिले में टाॅप चतुर्थ स्थान पर आए तो वह उपहार में पेन देंगे। डा. कंचन सिंह ने जिला टाॅप किया और वह गुरू जी के पेन के हकदार हो गए।
परीक्षा के दौरान सुबह चार बजे देखने आते थे

डा. कंचन सिंह बताते हैं कि उन दिनों जब परीक्षा होती थी तो वह स्कूल के ही कमरों में रहकर रात्रि में पढ़ार्इ किया करते थे। उस समय रात्रि में और सुबह चार बजे गुरू जी देखने आते थे कि हम पढ़ रहे हैं या नहीं। लैंप की रोशनी में भी वह पढ़ाने लगते थे।
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नाई की बाल बनाई और मल्लाह की उतराई नहीं रखते

उन्होंने एक किस्सा बताया कि आज से करीब तीस साल पहले जब वह गांव गए तो यमुना में बाढ़ आई हुई थी। उन्हें किनारे पर ही गुरू पंडित वंशरूप शुक्ला जी मिल गए। उनको भी नाव से यमुना पार करनी थी। दोनों लोग नाव में सवार हुए। नाव किनारे पहुंची तो डा. कंचन सिंह अपने और गुरू के रूपये मल्लाह को देने लगे तो गुरू जी वंशरूप शुक्ला ने कहा कि वह नाई की बाल बनवाई और मल्लाह की उतराई किसी अन्य को नहीं देने देते। लाख कहने पर भी गुरू जी नहीं माने और अपनी नाव उतराई उन्होंने ही अलग से दी।
आज भी प्रतिदिन याद करता हूं

डा. कंचन सिंह कहते हैं कि वह अपने गुरू को आज भी याद करते हैं। डा. कंचन सिंह के लिए वंशरूप शुक्ला इसलिए भी पूज्य हैं कि उन्होंने उनके पिता को भी पढ़ाया था। वह प्रतिदिन सुबह अपने गुरू को याद कर अपने दिन की शुरूआत करते हैं। उनका कहना है कि पुराने जमाने में अध्यापकों में छात्रों के प्रति अटूट स्नेह और विश्वास होता था।

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