सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सबूत यह दर्शाते हैं कि दुर्घटना में अपीलकर्ता का एक पैर खराब हो गया था। वह चाहता था कि उसका बेटा अब कुछ व्यापार शुरू करें। दुकान मालिक के पास उनकी दुकान के अलावा और कोई संपति भी नहीं है। सुप्रीम कोर्ट पीठ ने हाईकोर्ट के फैसले को भी खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने अपीलीय अथॉरिटी के आदेश को बहाल किया और कहा कि हाईकोर्ट द्वारा रिट अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए अपीलीय अथॉरिटी के सबूतों से छेड़छाड़ उचित नहीं है। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने दुकान खाली करने को 31 दिसंबर का समय किरायेदार को दिया है।
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बता दें कि दुकान मालिक की उत्तराखंड के हरिद्वार जिले के ज्वालापुर में दुकान है। जो कि उसने काफी समय पहले किराए पर दी थी। अब वह अपने बेटे के लिए किरायेदार के कब्जे से दुकान खाली करवाना चाहता है। लेकिन किराएदार ने दुकान खाली करने से मना कर दिया। किराया प्राधिकारी ने भी दुकान मालिक के आवेदन को अस्वीकार कर दिया था। लेकिन अपीलीय अथॉरिटी ने उसकी अपील स्वीकार कर ली और किरायेदार को दुकान खाली करने का आदेश दिया। इस आदेश के खिलाफ किराएदार ने उत्तराखंड हाईकोर्ट में रिट डाली थी। हाईकोर्ट ने अपीलीय अथॉरिटी के फैसले को पलट दिया। हाईकोर्ट ने फैसला किराएदार के पक्ष में दिया। जिसके बाद दुकान मालिक ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट ने दुकान मालिक के पक्ष में फैसला दिया।