मेरठ

ज्यादा गन्ना उत्पादन करने के बाद भी सरकार की इस पॉलिसी से बर्बाद हो रहे हैं गन्ना किसान

गन्ने की बड़ी उत्पादकता से चीनी मिलें बंदी के कगार पर तो किसानों की आर्थिक स्थिति भी दांव पर

मेरठJun 11, 2018 / 12:40 pm

Iftekhar

ज्यादा गन्ना उत्पादन करने के बाद भी सरकार की इस पॉलिसी से बर्बाद हो रहे हैं गन्ना किसान

शिवमणी त्यागी/केपी त्रिपाठी
सहारनपुर/मेरठ। गन्ना बेल्ट के नाम से मशहूर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ना किसान और चीनी मिल मालिक दोनों की हालत पस्त है। ऐसा नहीं है कि इलाके में सूखा, अकाल या फसल खराब होने की वजह से गन्ना किसान और चीनी मिल बर्बादी की कगार पर पहुंचे हैं। सच्चाई ये है कि इलाके में लगातार गन्ना उत्पादन का रकबा और प्रति हेक्टेयर गन्ना उत्पादन भी बढ़ा है। इलाके में गन्ना का अति उत्पादन ही किसानों और चीनी मिल दोनों के लिए मुसीबत बनती जा रही है। किसान अपनी बदहाली का ठीकरा चीनी मिलों पर फोड़ रहे हैं। वहीं,चीनी मिल मालिक इस हालत के लिए सरकारी पॉलिसी को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। गन्ने के मुद्दे ने सूबे की सत्ताधारी पार्टी भाजपा के समीकरण को भी बिगाड़ कर रख दिया है। कैराना लोकसभा और नूरपुर विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिली हार इसका जीता जागता उदाहरण है। दरअसल, राज्य में 50 लाख गन्ना किसान हैं, जिनका तकरीबन 13 हजार करोड़ रुपया चीनी मिलों पर पुराना बकाया है। अगर बात इस सत्र की की जाए तो इस सत्र में भी किसानों ने 40 करोड़ का गन्ना मिलों का बेचा है, जिसका भुगतान नहीं हुआ है। लिहाजा अपने इसी नाराज मतदाता को साधने के लिए हाल ही में केन्द्र सरकार ने 8000 करोड़ का पेकैज जारी किया है। लेकिन सवाल यह है कि क्या बेल आउट या राहत का पैकेज गन्ना किसानों के बकाये के मुद्दे का स्थाई और समुचित इलाज है।

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3 साल में गन्ने का उत्पादन हुआ दोगुना

पहली बार सुनने में यह जरूर अजीब लगता है कि उत्पादन बढ़ने से नुकसान हो रहा है, लेकिन ये सच्चाई है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ने की लगातार बढ़ती उपज से किसान और चीनी मिल दोनों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। वर्ष 2015-16 में सहारनपुर, मुजफ्फरनगर और शामली की चीनी मिलों ने 908 कुंतल गन्ने की पेराई की थी। पिछले वर्ष यानी वर्ष 2016-17 में इन चीनी मिलों ने 1390 लाख कुंतल गन्ने की पेराई की गई और इस वर्ष यह आंकड़ा लगभग 2 गुना हो गया है। इस वर्ष इन चीनी मिलों ने 1721 कुंतल गन्ने की पेराई हो चुकी है। अगर देखा जाए तो 3 साल में सहारनपुर मुजफ्फरनगर और शामली में गन्ने की उत्पादकता लगभग 2 गुनी हो गई है। ऐसे में चीनी के उत्पादन में वृद्धि हुई, जिससे बाजार में मांग से ज्यादा सप्लाई होने की वजह से चीनी का भाव भी गिरा है। चीनी मिल मालिकों का दावा है कि उन्हें उत्पादन लागत से भी कम कीमत पर चीनी बेचने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। चीनी मिलों का घाटा बढ़ने से किसानों का भुगतान भी अटक रहा है। यही वजह है कि चीनी मिल मालिक और गन्ना किसान दोनों के सामने अपने अस्तित्व को बचाए रखने की चुनौती खड़ी हो गई है।

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किसानों की बर्बादी की बड़ी वजह
किसान नेता और गन्ना किसान नीरज पांचली का कहना है कि सरकार ने गन्ने के रेट नहीं बढाए हैं। पिछले पांच साल में गन्ने के रेट में 10 प्रतिशत का ही इजाफा हुआ है। जबकि बिजली और खाद के दामों में हर साल बीस प्रतिशत की वृद्धि हो जाती है। जो गन्ना आज से पांच साल पहले 280 रूपये कुंतल जा रहा था। आज उसकी कीमत बढ़कर मात्र 325 रूपये कुंतल ही हो सकी है। जबकि खाद का कट्टा जो पांच साल पहले 800 रूपये का था आज वह 1200 रूपये का मिल रहा है। किसान के लिए गन्ना बोना अब फायदे का सौदा नहीं रहा।

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इसलिए मिल मालिक हो रहे हैं बर्बाद
नगला मिल के मैनेजर एलडी शर्मा का कहना है कि सरकार ने मिलों के अधिकारों को छीन लिया है। पहले मिले अपने घाटे को चीनी का निर्यात कर पूरा कर लेती थी। लेकिन अब मिल अपनी चीनी का निर्यात बाहर नहीं कर सकती। इसके अलावा गन्ने से निकलने वाला शीरा भी सरकार और शराब बनाने वाली कंपनियां अपनी जरूरत के हिसाब से ही खरीदती हैं। इस बार गन्ने के जबरदस्त प्रोडक्शन के कारण बंपर शीरा निकला है, जो मिलों के लिए किसी मुसीबत से कस नहीं है। उन्होंने बताया कि शीरा इतना एकत्र हो गया है कि उसे रुपये देकर बाहर फिंकवाया जा रहा है। एलडी शर्मा के मुतबािक सरकार मिलों पर चीनी बेंचकर किसानों का भुगतान करने का दबाव बना रही है, जबकि बाजार में चीनी के दाम गिरने से मिलों का घाटा बढ़ रहा । उन्होंने कहा कि एक कुंतल चीनी बनाने में 3200 रूपये की लागत आ रही है, जबकि बाजार में चीनी 2900 रूपये कुंतल बिक रही है। इस पर जीएसटी अलग से है। बढ़ती उत्पादकता सस्ती चीनी और लगातार भुगतान के दबाव के चलते चीनी मिल मालिक परेशान है । वहीं, मेरठ परिक्षेत्र में चार साल पहले 46 लाख कुंतल होता था, जो आज 98 लाख कुंतल पैदा हो रहा है। पैदावार दुगनी हो गई, लेकिन मिलों ने अपनी पेराई क्षमता नहीं बढाई। मिलों की क्रेशिग पावर वही है। मिलों में गन्ना पेराई क्षमता से अधिक होने के कारण मिलों को गन्ना क्रेशिग में पसीना आ रहा है। यही कारण है कि इस बार सहारनपुर मंडल में 7 चीनी मिलें ऐसी हैं, जिन्होंने अगले पेराई सत्र के लिए सर्वे ही नहीं कराया है। इससे साफ है कि यह चीनी मिलें अगले पेराई सत्र में पेराई नहीं शुरू करना चाह रहीं। अगर ऐसा हुआ तो किसानों के सामने एक बड़ा संकट खड़ा हो जाएगा।

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क्या हैं समाधान
चीनी मिल प्रतिनिधियों के मुताबिक इसके अलग-अलग समाधान हो सकते हैं। सबसे पहला और आसान समाधान यह है कि किसान सहफसली पर ध्यान दें। गन्ने की बुवाई अधिक ना करें और गन्ना एक सीमा तक ही उत्पादित करें। ऐसा करने से केवल गन्ने का रकबा कम होगा, उत्पादन और रिकवरी पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। इससे चीनी मिलें और किसान दोनों ही खुशहाल होंगे। मार्केट में चीनी की डिमांड बढ़ने से अच्छे दाम चीनी मिलों को मिलेंगे, जिससे चीनी मिल भी समय से किसानों का भुगतान कर सकेंगी। एक दूसरा उपाय यह भी है कि सरकार को चीनी के कमर्शियल रेट घोषित कर देना चाहिए। दरअसल देश में चीनी का दो तरह से इस्तेमाल होता है। एक घरेलू और दूसरा व्यापारिक। लिहाजा, जो लोग चीनी का व्यापारिक इस्तेमाल करते हैं। उनके लिए सरकार एक न्यूनतम मूल्य दर अलग से तय कर दे और उससे नीचे व्यापारिक कार्योंं के लिए चीनी की खरीद न हो। इससे चीनी मिलों को भी लाभ होगा और आम आदमी की जेब पर भी महंगाई की मार नहीं पड़ेगी। एक तीसरा उपाय यह भी है कि किसान सहफसली खेती पर ध्यान दें। फसल चक्र बनाए रखें और से फसली खेती को बढ़ावा दें। ऐसा करने से किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी और गन्ने का भुगतान लेट होने में भी किसान आर्थिक रुप से कमजोर नहीं पड़ेगा।


सल्फर प्लांट और कोलहू बंद होने से भी बिगड़े हैं हालात
गन्ना विभाग में वरिष्ठ गन्ना अधिकारी अतुल त्यागी के मुताबिक सल्फर प्लांट और कोल्हू के बंद होने से मिलों का 20 प्रतिशत लोड कम हो जाता था। किसान अपना बचा हुआ गन्ना कोल्हू और सल्फर प्लांट पर डाल दिया करते थे। लेकिन खांडसारी परमिट खत्म करने और बढ़ते प्रदूषण का हवाला देकर इन ग्रामीण उद्योगों को बंद कर दिया गया। इस कारण अब परेशानी और अधिक बढ़ गई है। मवाना के गन्ना किसान विनीत का कहना है कि उनके मवाना के आसपास पहले काफी संख्या में कोल्हू और क्रेशर थे। अधिक उपज होने के कारण वे अपना बचा हुआ गन्ना कोल्हू में डाल देते थे, लेकिन कोल्हू बंद होने से उसका असर किसानों पर अधिक पड़ा है। गन्ने की खेती के लिए उनको खाद से लेकर पानी तक सभी उधार लेना पड़ता है। उसके बाद गन्ने की फसल कटने के बाद वह सब चुकाना होता है। लेकिन जब भुगतान नहीं मिलता तो काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है।

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