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अधिक प्रभावशाली है इस बार का जन्माष्टमी इन योगों से इस वर्ष भाद्र कृष्ण जन्म अष्टमी तिथि पर जयंती योग का निर्माण बहुत ही महत्वपूर्ण व प्रभावशाली हो गया है। यह चंद्रवंशी कृष्ण जयंती चंद्रमा के वार सोमवार को पड़ जाने से अमृत के समान शुभ व मंगलकारी हो गई है। परमात्मा कृष्ण का प्राकट्य समय रात्रि 12:12 मिनट कृष्ण जयंती पर मनाया जाएगा। तब सूर्य मंगल दोनों ही शुभ सिंह राशि में और शुक्र व मित्र बुध कन्या राशि में होंगे तथा शनि अपनी मकर राशि में होंगे एवं गुरु कार्यक्षेत्र में गोचर कर रहे होंगे। स्थिर योग व्याघात योग युक्त उपरोक्त प्रकार के विशेष योग 710 वर्ष पश्चात पड़ रहे हैं। माता देवकी को करें स्थापित श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर कक्ष के पश्चिम उत्तर दिशा के मध्य वायव्य कोण में सूतीका स्थल के रूप में आठ प्रकार के शुभ लक्षणों के प्रतीक के रूप में 8 रंग के वस्त्र को पलंग के रूप में बिछाकर माता देवकी को स्थापित कर भगवान की माता के रूप में पूजित करें। साथ ही पुत्र श्री कृष्ण को बाल गोपाल के रूप में स्थापित कर, उनकी आठ लीलाओं का वर्णन उद्धार करने वाला हो जाता है।
ऐसे कराएं कान्हा का जन्म अर्धरात्रि के समय जन्म लेने का प्रतीक स्वरूप खीरा फोड़कर भगवान का जन्म कराना चाहिए। इसके बाद बाल रूप को पंचामृत स्नान कराकर धूप, दीप, गंध, पुष्प से पूजन करना चाहिए तथा माखन मिश्री के भोग के साथ आरती व क्षमा प्रार्थना करके ही व्रत खोलना चाहिए। इसके अलावा गाय चराना, कालिया नाग मर्दन, श्री गिरिराज (गोवर्धन) धारण, बकासुर, अधासुर से श्रीकृष्ण को सजाना चाहिए। साथ ही पूतना आदि शौर्य लीलाओं के साथ माखन चोरी, मिट्टी भक्षण, उखल बंधन, दावानल पान, चीरहरण आदि की सुंदर, दिव्य चित्र व मूर्तियों को मोर पंख वृक्षों की लता पताका से पूर्ण श्रृंगारिक करना जन्माष्टमी पर माता लक्ष्मी की पूर्ण कृपा प्रदान करता है। कृष्ण जन्माष्टमी की रात्रि में कमल पर बैठी हुई देवी श्री देवकी के चरणों की सेवा में बैठती है।
30 अगस्त सोमवारीय कृष्ण जयंती व्रत में विशेष पूजन अर्चन मुहूर्त नृत्य मुहूर्त दोपहर 1:57 से 3:33 बजे तक लाभ अमृत योग सायं 3:33 से 6:45 बजे तक लाभ योग रात्रि 10:57 से 12:21 तक
मध्य रात्रि अभिषेक, प्राकट्य, भोग, आरती मुहूर्त रात्रि 11:59 से 12:46 तक जन्म रात्रि 12:12
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