यह भी पढ़ेंः आर्इपीएल में सट्टा लगा रहे थे 100 रर्इसजादे, दिल्ली की काॅल्स पर करोड़ों का खेल एेसे होता था यह भी पढ़ेंः हिन्दू संगठनों में उबाल, इन्होंने प्रधानमंत्री से कर दी यह बड़ी मांग डलहौजी की नीतियों के खिलाफ हुई थी बगावत इस विद्रोह का आरंभ 6 मई को मेरठ शहर में हुआ। इसका प्रमुख कारण डलहौजी की राज्य हड़पने की नीति व अंग्रेजाें द्वारा गाय की चर्बी से युक्त कारतूस देना बताया गया है।
यह भी पढ़ेंः मोदी आैर योगी के ‘बेटी बचाआे, बेटी पढ़ाआे’ नारे का यहां उड़ रहा मखौल, इस बच्ची से जानिए यह भी पढ़ेंः यह अभिनेत्री राजनीति में आने के लिए है बेचैन, पार्टी पर पत्ते नहीं खोले मेरठ से उठने वाला तूफान था कुछ निराला मेरठ में कुछ निराला ही तूफान उठ रहा था। वह था चर्बी वाले कारतूसों वाली घटना से उत्पन्न रोष। कारतूसों के बारे में सैनिक वास्तव में क्रोधित हैं या नहीं यह आजमाने के लिये अंग्रेजाें ने एक नई युक्ति सोची। उनके अनुसार छह मई को अश्वारोही दल के सैनिकों पर इन कारतूसों के उपयोग को थोपने का विचार किया, किंतु 90 में से केवल पांच सैनिकों ने ही कारतूसों को स्पर्श किया। बाद में सभी सैनिकों ने अंग्रेजों की आज्ञा ठुकरा दी। इस पर मुख्य सेनापति ने उन सैनिकों को 6 मई को न्यायालय से 8-10 साल के कड़े कारावास का दंड दिलवा दिया। इस घटना से दूसरे सैनिक क्षुब्ध हो गये। अब सैनिकों के लिये संयम रख पाना कठिन होने लगा। सैनिक छावनी में सैनिकों की कई गुप्त बैठकें हुई। 31 मई की क्रांति के लिये तय तिथि तक चुपचाप रहना उनके लिये कठिन था। अंत में 10 मई को मेरठ में विद्रोह की शुरूआत हो गई। सैनिकों की छावनी में मारो फिरंगी को, फिरंगियों को काटो के नारे गूँजने लगे। घुड़सवार अपने देशभक्त धर्मवीरों को जेल से छुटाने के लिए सबसे पहले आगे बढ़े। एक ही क्षण में कारागृह की दीवारों को चूर-चूर कर दिया गया। 11वीं टुकड़ी के कर्नल को 20वीं टुकड़ी के सैनिकों ने मार डाला।
यह भी पढ़ेंः दो अप्रैल को उपद्रव करने वालों की पहचान, पुलिस कस रही शिकंजा ब्रितानी अस्तबल में छिप गए थे विद्रोह आरंभ होते ही पूर्व योजनानुसार दिल्ली के साथ सम्पर्क कराने वाले तार यंत्रों के तार तोड़ दिये गये। सैनिकों से बचने के लिये कुछ ब्रितानी अस्तबल में छिप गये तो कुछ पूरी रात पेड़ों के नीचे पड़े रहे व कुछ अपने घर की तीसरी मंजिल पर छिपे रहे। अंधकार होते ही सैनिक दिल्ली की ओर चल पड़े।