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मेरठ

छह मई 1857 को लिख गई थी प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की पटकथा

ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ भारतीय फौज ने 10 मर्इ 1857 को विद्रोह किया था
 

मेरठMay 06, 2018 / 10:48 am

sanjay sharma

meerut
मेरठ। 10 मई सन 1857 भारतीय इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखी हुई है, लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि मेरठ में यह विद्रोह छह मई 1857 को ही प्रारंभ हो गया था। 10 मई सन 1857 में अंग्रेजी फौज के भारतीय सिपाहियों ने विद्रोह कर दिया। यह विद्रोह एक साल तक चला और उत्तर भारत के अधिकतर भागों में फैल गया। इसे भारत का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम कहा गया। यह लड़ाई मुख्यतया दिल्ली लखनऊ, कानपुर, झांसी ओर बरेली में लड़ी गई। इस लड़ाई में झांसी की रानी लक्ष्मी बाई, अवध की बेगम हजरत महल, नाना साहब, मौलवी अहमद शाह, राजा बेनी माधव सिंह अजीमुल्ला खां और अनेक देश भक्तों ने भाग लिया।
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डलहौजी की नीतियों के खिलाफ हुई थी बगावत

इस विद्रोह का आरंभ 6 मई को मेरठ शहर में हुआ। इसका प्रमुख कारण डलहौजी की राज्य हड़पने की नीति व अंग्रेजाें द्वारा गाय की चर्बी से युक्त कारतूस देना बताया गया है।
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मेरठ से उठने वाला तूफान था कुछ निराला

मेरठ में कुछ निराला ही तूफान उठ रहा था। वह था चर्बी वाले कारतूसों वाली घटना से उत्पन्न रोष। कारतूसों के बारे में सैनिक वास्तव में क्रोधित हैं या नहीं यह आजमाने के लिये अंग्रेजाें ने एक नई युक्ति सोची। उनके अनुसार छह मई को अश्वारोही दल के सैनिकों पर इन कारतूसों के उपयोग को थोपने का विचार किया, किंतु 90 में से केवल पांच सैनिकों ने ही कारतूसों को स्पर्श किया। बाद में सभी सैनिकों ने अंग्रेजों की आज्ञा ठुकरा दी। इस पर मुख्य सेनापति ने उन सैनिकों को 6 मई को न्यायालय से 8-10 साल के कड़े कारावास का दंड दिलवा दिया। इस घटना से दूसरे सैनिक क्षुब्ध हो गये। अब सैनिकों के लिये संयम रख पाना कठिन होने लगा। सैनिक छावनी में सैनिकों की कई गुप्त बैठकें हुई। 31 मई की क्रांति के लिये तय तिथि तक चुपचाप रहना उनके लिये कठिन था। अंत में 10 मई को मेरठ में विद्रोह की शुरूआत हो गई। सैनिकों की छावनी में मारो फिरंगी को, फिरंगियों को काटो के नारे गूँजने लगे। घुड़सवार अपने देशभक्त धर्मवीरों को जेल से छुटाने के लिए सबसे पहले आगे बढ़े। एक ही क्षण में कारागृह की दीवारों को चूर-चूर कर दिया गया। 11वीं टुकड़ी के कर्नल को 20वीं टुकड़ी के सैनिकों ने मार डाला।
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ब्रितानी अस्तबल में छिप गए थे

विद्रोह आरंभ होते ही पूर्व योजनानुसार दिल्ली के साथ सम्पर्क कराने वाले तार यंत्रों के तार तोड़ दिये गये। सैनिकों से बचने के लिये कुछ ब्रितानी अस्तबल में छिप गये तो कुछ पूरी रात पेड़ों के नीचे पड़े रहे व कुछ अपने घर की तीसरी मंजिल पर छिपे रहे। अंधकार होते ही सैनिक दिल्ली की ओर चल पड़े।

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