यह भी पढ़ेंः तहसील की टीम करेगी मेरठ बवाल में हुए नुकसान का आंकलन, लेकिन पहले ये रिपोर्ट होगी बेहद अहम मिला मौका गवाना नहीं चाहेंगे मौकापरस्त सपा, बसपा और रालोद का गठजोड़ देखा जाए तो जातिगत समीकरणों के लिहाज से मजूबत कहा जा सकता है। खासकर पश्चिम उप्र में। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जाट बेल्ट में चौधरी चरण सिंह किसानों के जनप्रिय नेता माने जाते थे। उसके बाद उनके उत्तराधिकारी के तौर पर चौधरी अजीत सिंह ने इस बेल्ट में अपनी पकड़ बनाई, लेकिन वे इतनी मजबूत तरीके से जाटों में अपनी पकड़ नहीं बना सके। जैसा कि चौधरी चरण सिंह ने बनाई थी। पिछले कई चुनाव में उनकी पकड़ ढीली होती गई है। नतीजा यह हुआ कि परंपरागत सीट बागपत भी छिन गई। अब सपा-बसपा के साथ मिलकर एक बार फिर अपनी नई राजनीतिक पारी रालोद शुरू करने की कवायद में है। तीनों ही दलों को एक-दूसरे का सहारा है। बात बसपा की करे तो वह दलित-मुस्लिम राजनीति फार्मूले पर मैदान में उतरती रही है, लेकिन पिछले विधानसभा चुनावों में उनका यह फार्मूला काम नहीं आ पाया।
यह भी पढ़ेंः भाजपा सांसद ने कहा- मेरठ की भूसा मंडी में अतिक्रमण की आड़ में होता है ये काम, इसे छिपाने के लिए रची गर्इ साजिश ‘जामुद’ पश्चिम की राजनीति में दे सकता है नया संदेश रालोद नेता राजकुमार सांगवान कहते हैं कि आज भाजपा सरकार से हर आम आदमी परेशान है। किसान हो या फिर बिजनेसमैन। सभी लोग भाजपा की सरकार से त्रस्त हैं। उन्होंने बताया कि रालोद के गठबंधन में आने से जाट भी इसमें जुड़ जाएगा तो दलित, मुस्लिम और जाट गठबंधन राजनीति में नया संकेत दे सकता है।
भाजपा के लिए होगी चिंता की बात राजनीतिक विश्लेषक संजीव शर्मा कहते हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में खासी संख्या में आबादी जाटों की है और अगर यह रालोद की तरफ लौटती हैं तो यह भाजपा के लिए चिंता की बात हो सकती है। 2014 के लोकसभा चुनाव में पश्चिमी यूपी की सभी दस लोकसभा सीटों पर भाजपा जीती थी। तब बड़े पैमाने पर जाटों ने मोदी लहर के कारण भाजपा को वोट दिया था। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 26 फीसदी मुस्लिम और 21 फीसदी दलित आबादी है।
यह भी पढ़ेंः मेरठ बवालः 22 उपद्रवी थे शामिल, इन पर घोषित किया गया इनाम, पुलिस ने शुरू की ये कार्रवार्इ, देखें वीडियो लिटमेस टेस्ट में पास होने के बाद होगी नई शुरूआत सपा, बसपा और रालोद से यूपी में नई किस्म की शुरुआत पिछले लोकसभा उप-चुनाव से हो चुकी है जो जातिगत समीकरणों के जरिए इस राजनीति को अंजाम देगी। यूं तो रालोद ने पिछले विधानसभा चुनाव में एक और 2012 के चुनाव में 9 सीटें जीती थी। रालोद की पकड़ इस अंचल के जिलों में जाटों की भूमिका को लेकर रही है।
2013 में छिटक गया था रालोद से जाट 1998 में अजीत सिंह ने रालोद का गठन किया था। पश्चिमी यूपी में जाट-मुस्लिम समुदाय इनका प्रमुख वोट बैंक था। 2013 में मुजफ्फरनगर दंगों के बाद ये वोट बैंक रालोद से छिंटक गया। 2014 के लोकसभा चुनावों में जाटों ने भाजपा का दामन थाम लिया तब से इस गन्ना बेल्ट में रालोद की सियासी जमीन खिसक रही है और अब उसे बचाना रालोद के लिए जरूरी हो गया।