मेरठ

Lockdown में रोजा इफ्तारी छोड़ पुजारी का शव कंधे पर रखकर श्मशान चल पड़े मुस्लिम

Highlights

मेरठ के शाहपीर गेट की कायस्थ धर्मशाला के मंदिर के थे पुजारी
आसपास के मुसलमानों ने पुजारी के अंतिम संस्कार की तैयारी की
लॉकडाउन के कारण पुजारी के दोनों बेटे अपने घर नहीं आ सके

 

मेरठApr 29, 2020 / 10:32 am

sanjay sharma

मेरठ। मेरठ को सांप्रदायिक दंगों के कारण कलंक मिला हुआ हैं वहीं दूसरी ओर यह क्रांतिकारी धरा हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल भी बेहतर तरीके से देना जानती है। यहां जब भी दोनों कौम के भाइयों को किसी के कांधे की जरूरत पड़ी दोनों ही मजहबों के लोगों ने खुले दिल से एक-दूसरे का साथ दिया और अपनी जिम्मेदारी भी निभाई। ऐसी ही एक मिसाल लॉकडाउन और रमजान के बीच मंगलवार को देखने को मिली। जब पुजारी की मौत के बाद मुस्लिम समाज के लोग आगे आए और उन्होंने न सिर्फ अर्थी को कंधा दिया बल्कि अंतिम संस्कार की सभी रस्मों में पूरी तरह से अपनी जिम्मेदारी भी निभाई। शव को कंधा देने में मुस्लिम समाज के लोग अपना रोजा खोला भी भूल गए और जब तक अर्थी को अग्नि नहीं मिल गई रोजा नहीं खोला।
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कोतवाली थाना क्षेत्र के शाहहपीर गेट स्थित कायस्थ धर्मशाला में रमेश चंद माथुर अपने परिवार के साथ रहते हैं। उनके दो बेटे हैं। जिनमें से एक उनके साथ ही रहता है जबकि दूसरा दिल्ली में रहता है। रमेश की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं हैं रामेश माथुर काफी लंबे समय से कायस्थ धर्मशाला में भगवान चित्रगुप्त के मंदिर की देखभाल कर रहे थे। 65 वर्षीय रमेश का अचानक निधन हो गया। लॉकडाउन के चलते रमेश के अंतिम संस्कार में कोई परेशानी न आए इसके लिए मुस्लिम समाज आगे आया और उनके अंतिम संस्कार की हर चीज की व्यवस्था कराई। एक तरफ रोजा इफ्तारी का समय हो रहा था तो दूसरी ओर रमेश की अर्थी को श्मशान पहुंचाने का इंतजाम करना था। उनके पड़ोस में रहने वाले मुस्लिम समाज के लोगों ने रोजा इफ्तारी छोड़ उनकी अर्थी को शमशान पहुंचाने को एहमियत दी।
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इस दौरान क्षेत्र निवासी अकील अंसारी ने गंगा मोटर कमेटी को फोन कर शव वाहन बुक किया और शव को अंतिम संस्कार स्थल तक ले जाने की व्यवस्था कराई। हालांकि किसी कारण शव वाहन क्षेत्र में नहीं पहुंचा तो मुस्लिम समाज के लोग शवयात्रा लेकर पैदल ही सूरजकुंड के लिए निकल पड़े। इस दौरान मुस्लिम समाज के दर्जनों लोग रमेश चंद माथुर की शवयात्रा में शामिल हुए और शवयात्रा को कांधा देकर सूरज कुंड तक पैदल ले गए। वहां पहुंचकर अंतिम संस्कार की सभी रस्में पूरी कराईं।

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