कार्डियक इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी दिल की गतिविधि के आंकलन में सहायक होती है। जिससे समय पर दिल की धड़कनों में गड़बड़ी की पहचान हो पाती है। रेडियोफ्रीक्वेंसी एब्लेशन विधि द्वारा दिल की कई बीमारियों के कारण से अनियमित दिल की धड़कन या तेज हृदय गति हों जाती है। कैथेटर द्वारा पृथककरण पसंदीदा उपचार बन गया है।
कैथेटर द्वारा पृथक्करण के सबसे सामान्य प्रकार को रेडियो आवृति पृथककरण या आरएफए (रेडियोफ्रीक्वेंसी एब्लेशन) भी कहा जाता है। इस विधि में कैथेटर पृथक्करण ऊर्जा के एक रूप का उपयोग करता है जो दिल के उन ऊतकों को खास कर लक्षित कर निष्क्रिय कर देता है जो हृदय के ताल (रिदम) की समस्या उत्पन्न करते हैं। यह उस अतालता (अरिदमिया) का अंत करता है जो प्रभावित स्थान से उत्पन्न हुई थी। डॉ. पाण्डेय ने बताया कि बढ़ी हुई नियंत्रित हृदय की धड़कन को ठीक कर मरीज का इलाज किया गया। मरीज उषा देवी को पिछले कुछ महीनों से घबराहट और चक्कर आ रहे थे। मरीज की धड़कन बहुत बढ़ जाती थी। प्राइवेट में उसे धड़कन को ठीक करने की कुछ टैबलेट्स दी गई थी। लेकिन उन्हें अधिक आराम नहीं हुआ।
मरीज ओपीडी में दिखाने आईं। ECG मे पता चला कि मरीज को पीएसवीटी (पैरोक्जीमल सुप्रावेंटिकूलर टेकीकार्डीया) नाम की बीमारी है। मरीज के दिल की जांच के लिए बताया गया जिसमे दिल की अंदर तार डाल कर धड़कन की बारे में पता किया जाता है। इसे इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी स्टडी कहते है। मरीज आयुष्मान लाभार्थी था। मरीज के तैयार होने पर डॉ. धीरज सोनी, डॉ. शशांक पाण्डेय एवम उनकी टीम द्वारा इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी स्टडी की गईं। जांच में पाया गया दिल के अंदर धड़कन बढ़ाने के लिए ऊर्जा के प्रवाह का एक और रास्ता है। अतिरिक्त बने हुए रास्ते को रेडियो फ्रीक्वेंसी एब्लेशन विधि द्वारा जला दिया गया। जिससे मरीज की धड़कन नियंत्रित हो गई। इसी तरह की बीमारी का दूसरा मरीज राजेंद्र को चक्कर आने और घबराहट की शिकायत थी। उसका भी इलाज इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी विधि द्वारा जांच तथा रेडियो फ्रीक्वेंसी एब्लेशन विधि द्वारा सफल ऑपरेशन किया गया।
डॉ. धीरज सोनी सहआचार्य एवम विभागाध्यक्ष हृदय रोग विभाग ने बताया कि कई मायनों में दिल एक परिष्कृत पंप की तरह होता है। जिसे अपने उचित काम के लिए विद्युत आवेग और वायरिंग की आवश्यकता होती है। दिल में यह विद्युत आपूर्ति एक नियमित और नपे तुले अंदाज़ में विशिष्ट ऊतकों के माध्यम से बहती है। जिससे ऊर्जा का प्रवाह होता रहता है जिससे हृदय के पंप का निर्बाध कार्य सुनिश्चित होता है। हालांकि, कई उदाहरणों में, यह विद्युत प्रवाह अवरुद्ध हो सकता है या बार-बार एक ही ऊतक के इर्दगिर्द घूमता रहता है जिससे हृदय की समग्र वायरिंग प्रणाली में एक प्रकार का ‘शॉर्ट सर्किट’ पैदा होता है।
कभी कभी एक असामान्य ऊतक, जिसे वहाँ नहीं होना चाहिए था, एक अतिरिक्त विद्युत आवेग का निर्माण कर सकता है। इन दोनों समस्याओं के कारण दिल की धड़कन अनियमित हो जाती है, कम या दिल की धड़कनें तेज हो जाती हैं, ये सभी लंबे समय में गंभीर प्रभाव डाल सकते हैं। कुछ दवाएं मदद करती हैं लेकिन पूरी तरह से प्रभावी नहीं होती हैं।
यह एंजियोग्राफी और एंजियोप्लास्टी के तरह ही किया जाता है। संक्षेप में, इस प्रक्रिया में पतले कैथेटर रक्त वाहिकाओं द्वारा अंदर हृदय में डाला जाता है। ज्यादातर यह पैर की रक्त की नलियों के माध्यम से स्थानीय एनेस्थीसिया के तहत किया जाता है, लेकिन कभी-कभी गर्दन के माध्यम से या कॉलर हड्डी के माध्यम से भी किया जाता है। एक बार कैथेटर हृदय के अंदर होता है तो इसका उपयोग हृदय के विभिन्न हिस्सों के भीतर विद्युत संकेतों को मापने और प्रदर्शित करने के लिए किया जाता है।
यह फ्लोरोस्कोपी (एक्स-रे) मशीन और परिष्कृत इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी (ईपी) सिस्टम की मदद से किया जाता है। कई बार हृदयरोग विशेषज्ञ हृदय की धड़कन को उस तरह से बना सकता है जैसा की यह वास्तविक समय में मरीज के साथ होता है ताकि असामान्य वायरिंग के स्थान की पहचान करने में मदद मिल सके।