यह भी पढ़ेंः Sawan Somvar Vrat 2019: भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए ये करें, मनोवांछित फल की होगी प्राप्ति घड़ी से एेसे करते थे मिलान शमशुल अजीज बताते हैं कि घंटाघर में लगी घड़ी का पेंडुलम जब बजता था तो इसकी आवाज 15 किलोमीटर दूर तक सुनार्इ देती थी। उस समय शोर-शराबा भी कम था तो हर घंटे के पश्चात पेंडुलम की आवाज गूंजती थी। उन्होंने बताया कि मंदिर-मस्जिद इसकी आवाज से खुलते थे तो किसान खेतों के लिए निकलते थे। यहां घंटाघर होने से तब लोग बहुत खुश थे।
यह भी पढ़ेंः सरकार के सख्त रुख के बाद अफसरों की खत्म हुई सुस्ती, पूरा अमला सड़क पर उतरा, देखें वीडियो कम आबादी आैर ट्रैफिक जाम भी नहीं ‘पत्रिका’ के साथ अपने अनुभव में शमशुल अजीज ने बताया कि उस समय घंटाघर के आसपास सिर्फ टाउन हाल था आैर दिल्ली के लिए बस स्टैंड भी घंटाघर के नजदीक था। घंटाघर के चारों आेर चुनिंदा दुकानें ही थी, लेकिन अधिकतर खाली थी। धीरे-धीरे आसपास की आबादी आैर दुकानें बढ़ने लगी थी। आज की तरह ट्रैफिक जाम की समस्या नहीं थी। शहर के बीचोंबीच स्थित घंटाघर के पास टाउन हाल है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान यहां टाउन हाल में अक्सर बैठकें आैर जनसभाएं होती थी। इनमें शहर व आसपास के लोग यहां पहुंचते थे।
यह भी पढ़ेंः VIDEO: झमाझम बारिश से मिली राहत, जलभराव से हुर्इ आफत 1990 के बाद समय को लेकर परेशानी बुजुर्ग शमशुल अजीज बताते हैं कि 1990 के बाद घंटाघर की घड़ी से लोगों को समय मिलाने में दिक्कतें आनी शुरू हुर्इ, क्योंकि इस बड़ी घड़ी के पीतल के पार्ट्स चोरी हो गए थे। इसके बाद घंटाघर की घड़ी बंद हो गर्इ। घंटाघर की जिम्मेदारी नगर निगम मेरठ (Nagar Nigam Meerut) की है, लेकिन यह घड़ी तब से लेकर अब तक लगातार आैर ठीक भी नहीं चल पायी। बीच-बीच में कुछ निजी प्रयास भी हुए, लेकिन कुछ समय के लिए यह ठीक रही, लेकिन फिर बंद हो गर्इ।
यह भी पढ़ेंः बसपा नेता याकूब कुरैशी ने लगाया आरोप- वोटिंग के बाद मतगणना केंद्र तक आठ घंटे में क्याें पहुंची र्इवीएम शाहरुख खान ने दिए थे छह लाख करीब दो साल पहले फिल्म अभिनेता शाहरूख खान (Filmstar Shahrukh Khan) की अभिनीत फिल्म जीरो (Film Zero) के निर्माण की तैयारी चल रही थी। यह फिल्म मेरठ पर आधारित थी। इसमें मेरठ का घंटाघर केंद्र बिन्दु था, लेकिन घंटाघर की घड़ी बंद थी तो शाहरूख खान ने इसे ठीक कराने के लिए छह लाख रुपये दिए थे। फिल्म जीरो प्रदर्शित भी हो गर्इ लेकिन अभी तक घंटाघर की घड़ी बंद पड़ी हुर्इ है।
यह भी पढ़ेंः VIDEO: पलायन का मुद्दा उछलने के बाद यहां का हर कोना होगा अब तीसरी आंख की जद में, इतने कैमरे लेगेंगे कि… मेरठ शहर की शान है घंटाघर बुजुर्ग शमसुल अजीज ने ‘पत्रिका’ को बताया कि घंटाघर मेरठ शहर की शान है। घड़ी बंद होने से समय खराब होने का अहसास होता है आैर लगता है जैसे कुछ मिसिंग है। घंटाघर क्षेत्र भी पूरी तरह से बदल गया है। बढ़ती आबादी, बढ़ते कारोबार आैर ट्रैफिक जाम से घंटाघर क्षेत्र पूरी तरह बदल गया है, जबकि जरूरत है मेरठ की इस धरोहर को संजोने की। इसके लिए सरकारी मशीनरी को तत्परता से आगे आना होगा।