मेरठ

Independence Day 2019: गांधी जी यूपी के इस शहर में रुके थे 8 दिन और हिलाकर रख दी थी ब्रिटिश हुकूमत

खास बातें

आजादी की अलख जगाने मेरठ में तीन बार आए गांधी
यहां जब भी वे आए, गांधी आश्रम में जरूर रखते थे
मेरठ ही नहीं अन्य क्षेत्रों के लोग भी शामिल होते थे

 

मेरठAug 13, 2019 / 10:32 am

sanjay sharma

केपी त्रिपाठी, मेरठ। आजादी की गाथा में मेरठ का बहुत बड़ा योगदान है। मेरठ समेत पूरे पश्चिम उत्तर प्रदेश का जर्रा-जर्रा आजादी के इतिहास में दर्ज है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कई नेताओं ने मेरठ का दौरा किया। देशवासियों में आजादी की अलख जगाने के महात्मा गांधी भी मेरठ आए थे। उन्होंने यहां के हिन्दू-मुस्लिमों में एकता की ऐसी अलख जगाई कि अंग्रेजों के माथे पर पसीना आ गया था। मेरठ के शहीद स्मारक में रखे गांधी जी के 1920 के मेरठ दौरे से जुड़े दस्तावेजों के मुताबिक गांधी जी 22 जनवरी 1920 की सुबह 9.30 बजे कार से मेरठ पहुंचे थे। देवनागरी स्कूल में गांधी जी का हिन्दू और मुस्लिमों ने भव्य स्वागत किया गया था।
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हिन्दू-मुस्लिमों के बीच रहा ऐसा तालमेल

22 जनवरी 1920 को मेरठ पहुंचे गांधी जी मेरठ में 30 जनवरी तक रुके थे। आठ दिन के उनके कार्यक्रमों ने ब्रिटिश हुकूमत में ऐसी हलचल मचाई कि इसकी गूंज ब्रिटेन तक पहुंच गई। मेरठ में जो अंग्रेज अधिकारी थे उनको तुंरत बदल दिया गया। उनकी जगह दूसरे तेजतर्रार अधिकारी को मेरठ यूनिट की कमान सौंपी गई। मेरठ में अपने दौरे के दौरान गांधी जी ने जो हिंदू-मुस्लिम एकता का माहौल तैयार किया, उससे अंग्रेजी हुकूमत हिल गई थी। यहां गांधी जी ने मेरठ में कई जनसभाएं और रैलियां की थी। इस दौरान हिंदुओं ने चांद सितारा का परिधान पहना था और मुस्लिम पीला तिलक लगाकर जनसभाओं और रैलियों में शामिल हुए थे।
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आने पर निकाला गया भव्य जुलूस

गांधी जी के मेरठ आगमन के बाद देवनागरी स्कूल में उनका स्वागत किया गया इसके बाद भव्य जुलूस निकला गया था। जुलूस में कई लोग दूसरे देश जैसे मिश्र, अरब और तुर्की के परिधानों को पहनकर चल रहे थे और भारत की स्वाधीनता का समर्थन कर रहे थे। इनमें से कई घोड़ों-साइकिल पर सवार थे तो कई नंगे पांव ही जोश के साथ आगे हिन्दुस्तान जिंदाबाद के नारे लगाते हुए चल रहे थे। जुलूस में शामिल हिंदुओं ने जहां चांद-सितारा का चिह्न् अपने पोशाक पर लगाया था वहीं मुस्लिमों ने पीला चंदन का तिलक लगाया हुआ था। दोनों ही वंदे मातरम के नारे लगा रहे थे। यह जुलूस कम्बोह गेट तक पहुंचा तो वहां जनसभा हुई। यहां गांधीजी का नागरिक सम्मान भी हुआ था। जुलूस में जो लाइनें बार-बार दोहरायीं जा रही थीं, वे थीं – ‘पाखंड और चिकनी-चुपड़ी बातें करने से सच्ची एकता प्राप्त नहीं हो सकती। आप दूसरों को तो धोखा दे सकते हैं, लेकिन ईश्वर को नहीं।’
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फिर 9 साल बाद आए थे गांधी जी

दूसरी बार गांधीजी का मेरठ आगमन 1929 में हुआ। वह इस बार सविनय अवज्ञा आंदोलन से पहले मेरठ में माहौल बनाने पहुंचे थे। वह इस दौरान मेरठ के जेल में बंद कैदियों से मिले। गांधीजी का अंतिम मेरठ दौरा 1931 का रहा। वह तब गांधी आश्रम में रुके थे। यहां से लौटने के बाद उन्होंने अपने समाचार पत्र ‘नवजीवन’ में गांधी आश्रम की गतिविधियों और भावी योजनाओं के बारे में विस्तार से लिखा था। इतिहासकार डा. अमित पाठक का कहना है कि मौजूद दस्तावेजों में गांधी जी के मेरठ में तीन बार आना दर्ज है। वह जब भी यहां आए गांधी आश्रम में जरूर रुके। उनके कार्यक्रमों में मेरठ ही नहीं अन्य क्षेत्रों के लोग भी शामिल होते थे।
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