एकल बिहारी मुनियों को समाज में नहीं मिलेगा प्राश्रय एकल बिहारी मुनियों को भारत का कोई भी समाज प्राश्रय नहीं देगा एवं सख्ती से इस प्रवृति पर काबू पाना होगा। आचार्य संघ इस बारे में विशेष ध्यान रखे कि उनके द्वारा दीक्षित साधु विशेष परिस्थितियों को छोड़कर एकल बिहारी नहीं हो। अगर साधु संघ छोड़कर जाने की कोशिश करें तो समाज को इस बारे में सचेत करें।
यह भी पढ़ेंः सरकार के फैसले से नाराज हुए राजपूत, कहा- इस बार चुनाव में इनको देंगे वोट आर्यिका का साधु-संतों से कोई मेल नहीं जैन समाज की जारी गाइड लाइन में कहा गया है कि आर्चायगण इस बात का ध्यान रखें कि आपने संघन्थ-साधुओं को या उनके द्वारा दीक्षित साधुओं को आचार्य पदवी प्रदान नहीं करें। साधु-संतों से आर्यिका संघ एकदम पृथक रहे एवं सिवाय शिक्षा के समय के साधु-संत एवं आर्यिका संघ में कोई मेलजोल नहीं हो।
यह भी पढ़ेंः योगी के पसंदीदा आर्इपीएस के इस शहर का चार्ज संभालते ही ताबड़तोड़ घटनाएं, पुलिस की मुस्तैदी पर सवाल मुनि से पांच हाथ दूर रहेगी महिलाएं महिलाओं को कम से कम पांच हाथ दूर ही रखें, चाहे वह शिक्षण का समय हो या महिलाएं दर्शन के लिए पधारें। इसका एक मात्र अपवाद आहार के समय ही हो सकता है। आहार के समय भी कम से कम एक-दो पुरुषों की उपस्थिति होनी अनिवार्य है। सिर्फ महिलाएं आहार चर्चा पूरी नहीं कर सकती। एक या दो महिलाएं बगैर कुछ पुरूषों की उपस्थिति के साधुओं से न तो मिल सकती हैं और न ही वार्तालाप कर सकती हैं।
आहार चर्या में भी सम्मिलित नहीं होगी महिलाएं जारी गाइडलाइन के अनुसार साधु-संतों के साथ स्थायी रूप से महिलाएं न तो निवास कर सकती हैं और न ही आहार आदि चर्या कर सकती हैं। यह जिम्मेदारी स्थानीय समाज को भी उठानी होगी।
एक शहर में 15 दिन से अधिक निवास नहीं आगम की व्यवस्था के अनुरूप चातुर्मास के समय को छोड़कर एक शहर या स्थान में संत अधिक से अधिक 15 दिन निवास करें। तत्पश्चात उन्हें विहार करना चाहिए। एक बार किसी दुष्कृत्य में लिप्त पाए जाने पर उस साधु की पुनर्दीक्षा नहीं की जा सकती एवं उसे फिर आजीवन गृहस्थ बनकर ही रहना होगा।