मेरठ। गंगा, यमुना और सरस्वती देश की तीन प्राचीन और हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार पूज्य नदियां है। वर्तमान में गंगा और यमुना का तो अस्तित्व है, लेकिन सरस्वती को विलुप्त माना जाता है। सरस्वती के बारे में यह भी कहा जाता है कि यह नदी कभी रही ही नहीं। इस नदी के अस्तित्व में होने पर इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) भी शोध कर रहा है। चौधरी चरण सिंह विश्व विद्यालय के इतिहास विभाग में आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला में सरस्वती नदी की प्रमाणिकता के साक्ष्य प्रस्तुत किए गए। वक्ताओं ने पौराणिक ग्रंथों के अतिरिक्त 'इसरो' द्वारा किए गए शोध कार्य एवं अन्य वैज्ञानिक साक्ष्यों के माध्यम से सरस्वती नदी की प्रमाणिकता को प्रस्तुत किया। इस दौरान इसके विलुप्त होने और पुनः प्राप्ति की संभावनाओं पर भी प्रकाश डाला गया।
ब्रिटिश काल के मानचित्र में सरस्वती का उल्लेख
इसरो के पश्चिमी क्षेत्रीय रिमोट सेंसिंग केंद्र जोधपुर से आए वैज्ञानिक डा. बीके भद्रा ने कहा कि 50 वर्षों से सरस्वती नदी पर शोध हो रहा है। विज्ञान इतिहास से अलग नहीं है। ऋग्वेद, महाभारत और अन्य पौराणिक ग्रंथों में सरस्वती नदी का उल्लेख है। ब्रिटिश काल के एक मानचित्र में भी इस नदी का उल्लेख है। अभी तक की खोज से इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि सरस्वती नदी के किनारे सिंधु सभ्यता के समान ही एक अन्य सभ्यता विकसित थी, जो कि सिंधु सभ्यता से काफी प्राचीन थी। डा. भद्रा ने कहा कि 'इसरो' ने सेटेलाइट के माध्यम से राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, गुजरात आदि में सरस्वती से संबंधित स्थानों को चिन्हित किया है।
जैसलमेर में मिला मीठा पानी का भंडार
उन्होंने कहा कि सेटेलाइट से मिले चित्रों के स्थान पर जैसलमेर में 2000-2002 के बीच 21 नलकूप खोदे गए, जिनमें मीठा पेयजल का भंडार मिला है। इससे मरूभूमि का विकास हुआ है। साथ ही सीमांत क्षेत्रों में सैनिकों को भी शुद्ध पेयजल मिल रहा है। संचालन डा. कौशिकी दास गुप्ता ने किया। यहां इतिहास विभागाध्यक्ष डा. आराधना, डा. सुचि, डा. अलका, डा. किरन, डा. प्रवीन, डा. रीनू जैन, कमलकांत, लोकेश शर्मा, मोहित आदि रहे।
राजस्थान के सदानीरा में मिले प्रमाण
सरस्वती नदी शोध संस्थान जोधपुर से आए मदन गोपाल व्यास ने कहा कि कुछ लोग सरस्वती नदी के अस्तित्व को लेकर सवाल उठाते हैं, उन्हें वैज्ञानिक साक्ष्य स्वयं जवाब दे रहे हैं। 1869 में खंभात की खाड़ी और 1893 में राजस्थान में सदानीरा के प्रमाण मिल चुके हैं। नासा से प्राप्त चित्र भी सरस्वती नदी का प्रवाह मार्ग पाकिस्तान पंजाब से राजस्थान तक होने की पुष्टि कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सरस्वती नदी के मिले यह प्रमाण सिद्ध करते हैं कि भारत की ऐतिहासिकता कितनी प्राचीन हैं। भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर भी सदानीरा के प्रवाह मार्ग की पुष्टि कर चुका है।
राजस्थान में जीपीआरएस से सर्वे
उन्होंने बताया कि केंद्र और राज्य सरकार ने सरस्वती नदी के प्रवाह पर जनउपयोगी कार्यों को करने के लिए 68.67 करोड़ रुपये की योजना बनाकर काम शुरू कर दिया है। इसके तहत श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेर और जैसलमेर जिलों में कोर ड्रिलिंग करवाई जाएगी। पश्चिमी राजस्थान में जीपीआरएस सर्वे कराकर इस नदी के प्रवाह मार्ग पर कम से कम सौ ट्यूबवेल लगवाए जाएंगे।
Published on:
12 Apr 2018 04:42 pm
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