मेरठ

Child Labour: अदृश्य बाल श्रम की समस्या से ग्रसित बच्चियां, ग्रामीण क्षेत्र में लैंगिक बालश्रम बढ़ा

Invisible Child Labour: ग्रामीण इलाकों में लैंगिक बालश्रम बढ़ रहा है। गांव की बच्चियां स्कूल जाने के बजाय घर में काम में लगी हैं। यूपी में स्थिति तो अधिक खराब है।

मेरठJun 21, 2023 / 11:54 am

Kamta Tripathi

अदृश्य बाल श्रम की समस्या से ग्रसित बच्चियां

Invisible Child Labour : देश और प्रदेश में बाल श्रम आज एक बड़ी समस्या है। इसके खिलाफ सरकार ने कानून बनाए हैं। सरकारी विभागों को जिम्मेदारी सौंपी है। लेकिन गांवों में अदृश्य बाल श्रम Gender भेद के साथ बढ़ रहा है। यानी बच्चियों पर स्कूल की पढ़ाई की जगह घर की जिम्मेदारियों का बोझ लादा जा रहा है। ऐसी बच्चियों पर काम करने वाली एक संस्था एजुकेट गर्ल्स संस्था का मानना है कि बाल श्रम की समस्या से जूझ रही बच्चियों को इससे निकालने के लिए शिक्षा ही सबसे सशक्त माध्यम है। बच्चियों को इस समस्या से निकालने के लिए शिक्षा का अधिकार दिलाने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए। यूपी में हालात और अधिक खराब हैं। खासकर पूरब के गांवों में आज भी बच्चियों को स्कूल भेजने के बजाए घरों में काम करवाया जा रहा है। ये भी किसी बाल श्रम से कम नहीं है।

संस्था के मुख्य कार्यकारी अधिकारी महर्षि वैष्णव ने बताया कि हमने कई राज्यों में इस पर काम किया है। अधिकांश राज्यों की स्थिति काफी खराब है। राजस्थान के सिरोही जिले के एक गांव में पूनार नाम की बेटी के घर पहुंचे। पूनार आठवीं कक्षा के बाद स्कूल नहीं जा रही थी। जब उसके घर पहुंचे तो वह रसोई में जल्दी.जल्दी अपने काम निपटा रही थी। बातचीत में उसने कहा कि रसोई के बाकी बचे काम अब उसकी बहन निपटाएगी और वह अपनी नवजात भतीजी की देखभाल करेगी। स्कूल के बारे में पूछने पर उसने निराशा के साथ कभी न खत्म होने वाले कामों की ओर इशारा किया। यानी उसे अब घर के कामों से छुट्टी लेकर फिर से स्कूल जाने का विकल्प नजर नहीं आ रहा है। यह कहानी अकेली पूनार की नहीं है। बल्कि ऐसी कई बच्चियों की है। जो अदृश्य बाल श्रम के शोषण का शिकार हो रही हैं।

एक साल में 51,000 से अधिक बच्चियों को दिलाए पहचान दस्तावेज
बच्चियों के लिए राज्य और केंद्र सरकार की ओर से कई तरह की योजनाएं चलाई जा रही हैं। लेकिन जानकारी के अभाव में या प्रमाणित दस्तावेज आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र या जन्म प्रमाणपत्र, नहीं होने के कारण जरूरतमंद बच्चियां सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित रह जाती हैं। पिछले एक साल में 51,000 से अधिक बेटियों को पहचान पत्र दिलाने में मदद की है।


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वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक बाल श्रमिकों की संख्या 1.01 करोड़ है। जिनमें 56 लाख लड़के और 45 लाख लड़कियां हैं। ये वे बाल श्रमिक हैं, जो सरकार के बनाए बाल श्रम कानून की व्याख्या में आते हैं। लेकिन घरों में छोटी सी उम्र में पढ़ाई छोड़कर जिस पर घर के काम का बोझ लाद दिया गया हो। ऐसी अदृश्य बाल श्रमिक बेटियों की संख्या काफी बड़ी है। इसलिए बाल श्रम के दायरे को बढ़ाकर इसकी व्याख्या को पुनः परिभाषित करने की जरूरत है। प्रदेश की सरकारों को इस दिशा में काम करना चाहिए।

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