नेहरू जी ने यादगार के तौर पर भेंट किया था झंडा गुरु नागर के छोटे भाई देव नागर बताते हैं कि उनके दादा जी को ये तिरंगा कांग्रेस के अधिवेशन समाप्त होने के बाद नेहरू जी ने यादगार के तौर पर दिया था। उन्होंने यह कहते हुए दिया था कि इस तिरंगे की हिफाजत का जिम्मा अब तुम्हारा है। उसके बाद से आज तक यानी आजादी के 75 साल बाद भी देश का ये पहला तिरंगा नागर परिवार ने बड़े हिफाजत के साथ सुरक्षित रखा हुआ है। 75 साल पुराने इस तिरंगे का आकार 14 फीट चौड़ा और 9 फीट लंबा है।
अपने बच्चों से भी अधिक संभाल कर रखते हैं तिरंगे को गुरु नागर की पत्नी अंजू नागर का कहना है कि वे इस तिरंगे की देखभाल अपने बच्चे से भी ज्यादा करती हैं। उनकी शादी के बाद जब पता चला कि वे ऐसे खानदान में आई हैं, जिसके पास धरोहर के रूप में देश का पहला तिरंगा झंडा है तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। अंजू नागर बताती हैं कि वे इसके मान और सम्मान के साथ ही इसकी सुरक्षा का पूरा ख्याल रखती हैं। वे इसको हमेशा ऐसे स्थान पर रखती हैं, जहां पर इसको संविधान के अनुसार सम्मान मिले और इसकी सुरक्षा होती रहे। 75 साल से ये तिरंगा अपने उसी स्वरूप में है। लेकिन, अब और तब के इस तिरंगे में फर्क इतना है कि उस समय इसमें गांधी जी का चर्खा था। अब इसके बीच में चक्र बना हुआ है। अंजू नागर तिरंगे की साफ-सफाई का भी पूरा ध्यान रखती है। इस तिरंगे को वे सप्ताह में एक बार निकालकर धूप दिखाती हैं और ब्रश से इसकी सफाई भी करती हैं।
सरकारी उपेक्षा से आहत होकर ही नहीं सौंपा सरकार को गुरु नागर और उनकी पत्नी अंजू नागर बताते हैं कि इस तिरंगे को लेने के लिए उनके पास कई बार सरकारी नुमाइंदे आए। लेकिन, उन्होंने इसे देने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि ये हमारे पुरखों की निशानी है और सरकार पता नहीं इसकी हिफाजत ठीक से करे या न करे? इसलिए उन्होंने इस तिरंगे को अपने पास ही रखा है। अंजू का कहना है कि सरकार देश की धरोहर का ठीक से ध्यान नहीं रखती हैं। आज उनके पास यह तिरंगा सुरक्षित है, अगर सरकार को सौंप देते तो यह कहां गया इसका पता नहीं चलता।
कौन थे कर्नल गणपत राम नागर कर्नल गणपत राम नागर का जन्म 16 अगस्त 1905 को पंडित विष्णु नागर के घर हुआ था। मेरठ कॉलेज से पढ़ाई करने के दौरान उनको विदेश भेज दिया गया। जहां पर वे ब्रिटिश आर्मी में 1929 में किंग अफसर के पद पर नियुक्त हुए। इसके बाद 1939 में सिंगापुर के पतन के बाद ये आजाद हिंद फौज में भर्ती हो गए और सुभाष चंद्र बोस के काफी नजदीक होने पर उन्हें मेजर जनरल की पोस्ट से नवाजा गया। गणपत राम नागर के इकलौते बेटे सूरज नाथ नागर भी कुमायूं रेजीमेंट में 1950 से 1975 तक कर्नल के पद पर रहे।