चंडी देवी मंदिर का ये है इतिहास प्राचीन नव चंडी मंदिर के मुख्य पुजारी व प्रबंधक महेंद्र कुमार शर्मा ने बताया कि मुगलकाल में करीब एक हजार साल पहले कुतुबुद्दीन ऐबक के सेनापति बाले मियां ने मंदिर के आसपास कब्जे को लेकर लड़ाई लड़ी थी। जहां आज बाले मियां की मजार बताई जाती है, वहां पहले चंडी देवी मंदिर था। उस समय पंडित हजारी लाल की बेटी मधु चंडी बाला मंदिर के गेट पर खड़ी हो गई थी और बाले मियां का काफी विरोध किया था, तब मधु चंडी बाला ने उसकी उंगली काट दी थी। इस लड़ाई में वह शहीद हो गई थी। बाले मियां ने तब इस मंदिर को तहस-नहस कर दिया था। जहां बाले मियां की उंगली जहां कटकर गिरी वहां मुस्लिमों ने उसके मरने के बाद मजार बना दी। हालांकि इतिहासकार बताते हैं कि बाले मियां की असली मजार बहराइच में है और वहां उर्स भी लगता है। मंदिर तहस-नहस हो जाने के बाद वहां से 100 मीटर की दूरी पर जहां मंदोदरी ने पूजा के लिए गुफा बनवायी थी, ब्रिटिश काल में यहीं पर पंडित चंडी प्रसाद ने मां चंडी देवी की मूर्ति स्थापना करके पूजा शुरू की थी। उसके बाद नव चंडी देवी मंदिर का निर्माण हुआ और तब से यहीं पर इस मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए लोग आते हैं। जब से चंडी देवी मंदिर की स्थापना हुई तब से यहां मेला लगता आ रहा है। होली के एक सप्ताह के बाद यह मेला लगता है, पहले यह तीन दिन के लिए लगता था अब यह एक महीने के लिए लगता है। इस बार विक्रम संवत 2076वां मेला लगा था। इससे समझ सकते हैं यह मंदिर और मेला कितने प्राचीन हैं।
इस मंदिर की बहुत मान्यता मुख्य पुजारी पंडित महेंद्र कुमार शर्मा का कहना है कि इस मंदिर की बहुत मान्यता है। मां चंडी देवी सबकी झोली भरती है। कई ऐसे लोग आए, जिनके संतान नहीं हुई थी, मां ने उनकी मनोकामना पूरी की। उन्होंने बताया कि मां की पूजा-अर्चना के बाद श्रद्धालुओं को विशेष पूजा-मंत्र बताए जाते हैं, जिनके जाप के साथ-साथ मां की पूजा करने से मां चंडी देवी सबकी मनोकामना पूरी करती हैं।