इस दिन गुरूद्वारों में कार्यक्रम आयोजित करने के साथ ही छबील लगाते हैं। दाेपहर बाद यात्रा Baisakhi Mela निकाली जाती है जिसमें खालसा युवक तरह-तरह के करतब दिखाते हैं इस पर्व पर आयाेजित हाेने वाले कार्यक्रमों की भव्यता ऐसी हाेती है कि इन कार्यक्रमाें काे वर्षभर याद रखा जाता है लाेगाें काे वर्षभर बैसाखी का इंतजार रहता है। गत वर्ष कोरोना के चलते वैसाखी पर्व नहीं मन पाया था और इस बार भी इस पर्व पर कोरोना का साया पड़ा है।
इस साल की शुरुआत से ही दुनियाभर में कोरोना वायरस की खतरनाक मार पड़ी है। वेस्ट के लगभग सभी जिले लगातार कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों की वजह से प्रभावित हैं। प्रदेश के अधिकांश जिलों में रात्रिकालीन कर्फ्यू लगा दिया गया है। इसके साथ ही धार्मिक आयोजनों में भी कोविड-19 प्रोटोकॉल को सख्ती से लागू कर दिया गया है। इसी की वजह से बैसाखी की रंगत भी फीकी पड़ गई है। 13 अप्रैल को देश में बैसाखी का पर्व मनाया जाएगा लेकिन कोरोना वायरस की वजह से इस बार कोई धूमधाम नहीं रहेगी। कोविड—19 की गाइडलाइन के चलते इस साल बैसाखी के सभी कार्यक्रम रद्द किए जा चुके हैं।
मेरठ के थापर नगर गुरूद्वारा के पंथी सरदार रणजीत सिंह जस्सल ने बताया कि कोरोना संकट की वजह से सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए लोग इस बार त्योहार मना रहे हैं। इस त्योहार को मनाने के पीछे एक मान्यता ये है कि इस दौरान रबी की फसल कटने के लिए तैयारी हो जाती है। उन्होंने बताया कि गुरूद्वारे में भी आयोजित कार्यक्रम में लोगों को कई शिफ्टों में बुलाया गया है। उन्होंने बताया कि साल 1699 में बैसाखी के दिन ही सिखों के 10वें और अंतिम गुरु गोबिंद सिंह ने आनंदपुर साहिब में खालसा पंथ की स्थापना की थी। मान्यता ये भी है कि इसी दिन भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।