छत्तीसगढ़ में 2004 के चुनावों में भाजपा के सत्ता में आने के बाद से मुख्यमंत्री का पिछले लगभग साढ़े 13 वर्षों से दायित्व संभाल रहे डा.सिंह ने वर्ष 2008 से अपने वाहन से लाल बत्ती हटवा दी थी। उनके काफिले में जरूर एक दो वाहन लाल बत्ती वाले रहते है लेकिन वह कभी उन वाहनों में नहीं चलते।
जिलों के दौरों में भी वह लाल बत्ती लगे वाहनों पर नही चलते। इसके लिए कलेक्टरों को स्पष्ट निर्देश हैं कि वह बगैर लाल बत्ती के वाहन मुख्यमंत्री के लिए रखे। सादगी पसन्द और लो प्रोफाईल की छवि रखने वाले डा.सिंह नक्सलियों में हिटलिस्ट में सबसे ऊपर होने के बावजूद भी सुरक्षा सम्बन्धी तमाम निर्देशों को किनारे कर हेलीकाप्टर से गांवों में अचानक पहुंचने, स्कूली बच्चों के साथ जमीन में बैठकर मध्यान्ह भोजन करने, उज्जवला योजना के लाभार्थियों के किचन में जाकर महिलाओं से बात करने, किसानों से मिलने उनके खेत में पहुंच जाने में गुरेज नहीं करते।
हालांकि अतिविशिष्ट कल्चर से दूर रहने वाले डा.सिंह के अधिकांश मंत्रिमंडलीय सहयोगी, निगम मंडलों के अध्यक्ष एवं अन्य पदाधिकारी लाल बत्ती ही वाहनों पर नहीं लगाते बल्कि उनके द्वारा अतिविशिष्ट कल्चर के खुले प्रदर्शन की शिकायतें भी मिलती रहती है। इन लोगो को भी मोटर व्हीकल एक्ट में संशोधन की अधिसूचना जारी होने के बाद लाल बत्ती का मोह छोडऩे को विवश होना पडेगा।