वर्ष 1983 में परिवार की माली हालत देख ग्राम प्रधान रहे निरंजन सिंह ने परिवार के नाम तीन बीघा कृषि भूमि का पट्टा उन्हें आवंटित कर दिया। लेकिन कई माह बाद गांव के लोगों ने उस पर भी कब्जा कर लिया। उनके पिता ने प्रशासनिक अधिकारियों को इसकी शिकायत की लेकिन समाधान नहीं हुआ। वर्ष 2008 में उनके पिता की मृत्यु हो गई। पिता की मौत के बाद मामला लखनऊ में मुख्यमंत्री के दरबार में पहुंचा। लेकिन उसके बाद उसे न्याय नहीं मिला।
चकबंदी विभाग के अधिकारियों की अनदेखी के कारण उनका कृषि पट्टा उन्हें अभी तक नहीं मिल पाया है। परेशान होकर कई दिन पहले उन्होंने प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और डीएम को स्पीड पोस्ट कर अपने परिवार के साथ इच्छा मृत्यु की अनुमति मांगी थी। दो दिन पहले वह तहसील में आत्मदाह करने पहुंचे तो एसडीएम ने उसे समस्या का समाधान करने का आश्वासन देकर घर भेज दिया था। लेकिन तय समय में कुछ नहीं हुआ। लिहाजा परेशान होकर यह कदम उठा लिया। एसडीएम सुभाष सिंह का कहना है कि समस्या को लेकर उनकी चकबंदी अधिकारियों से बात हुई थी।