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चमेली, सूरज और काली सिंह के घण के खौफ से कोरोना कोसो दूर है। ये लोग हथौड़ी, कुदाल, फावड़ा, तवा और लोहे के तमाम ऐसे सामान को अपने हुनरमंद हाथों से बनाते हैं। 90 साल के काली सिंह हो या फिर 25 साल की सुमन बस्ती में रहने वाले ये सभी सुबह शाम दहकती आग में तप चुके लोहे को कोई न कोई आकार देते रहते हैं।90 साल के काली और 71 साल के सूरज के चेहरे पर चमक
71 साल के सूरज सिंह कहते हैं कि उनकी बस्ती में पहले भी कोई कोरोना संक्रमित नहीं हुआ था और इस बार भी अभी तक नहीं है। उनका कहना है कि बस्ती में रहने वाले करीब एक हजार लोग प्रतिदिन घण बजाते हैं और कोरोना से बचाव करने के लिए अश्वगंधा और अन्य चीजों का सेवन करते हैं। 90 साल के काली सिंह का कहना है कि उनके यहां आज तक कोई बीमार नहीं पड़ा। इसका सबसे बड़ा कारण यही है कि वे लोग मेहनत करते हैं। गर्मी हो या सर्दी वे सुबह-शाम मेहनत कर शरीर का पसीना निकालते हैं जिससे वे और उनकी बस्ती के लोग तंदुरूस्त रहते हैं। इसी तरह से हुक्का का कश लेती हुए चमेली भी कोरोना से बेखौफ कहती है कि अगर वो घण नहीं बजाएगी तो गुजारा कैसे चलेगा। ये कोरोना तो उनके घन के सामने टिकने से रहा।
कोरोना काल में नजीर बनी ये बस्तियां
इन लोगों के पास भले ही रुपया पैसा न हो लेकिन सेहत के मामले में ये मेरठ में आज सबसे धनी दिखाई देते हैं। इन लोगों की बस्तियां मेरठवासियों के लिए किसी नजीर से कम नहीं। इनका आत्मसंयम, अनुशासन और सजगता के कारण ही इनकी बस्ती में न तो कोरोना की पहली लहर घुस सकी और न अब दूसरी। ये बस्तियां इस बात के नजीर हैं कि अपनी जीवनशैली को नियंत्रित रखते हुए थोड़ी सी सावधानी से किसी भी महामारी का मुकाबला किया जा सकता है।
इन लोगों के पास भले ही रुपया पैसा न हो लेकिन सेहत के मामले में ये मेरठ में आज सबसे धनी दिखाई देते हैं। इन लोगों की बस्तियां मेरठवासियों के लिए किसी नजीर से कम नहीं। इनका आत्मसंयम, अनुशासन और सजगता के कारण ही इनकी बस्ती में न तो कोरोना की पहली लहर घुस सकी और न अब दूसरी। ये बस्तियां इस बात के नजीर हैं कि अपनी जीवनशैली को नियंत्रित रखते हुए थोड़ी सी सावधानी से किसी भी महामारी का मुकाबला किया जा सकता है।