ईदी के सामान से सजने लगे हैं बाजार
20 रमजान के बाद बहनों की ईदी देने की तैयारी शुरू हो जाती है। बाजारों में ईदी के सामान की दुकानें सजने लगी है। भाई ईदी लेकर जाने लगे है। बहनों को भी भाई, भतीजों द्वारा ईदी लाने वाली ईदी का इंतजार रहता है। जिनके भाई नहीं है, उनकी ईदी लेकर मां या पिता जाते हैं। ईद के दिन भी छोटे-छोटे बच्चों और बहनों को ईदी देने का रिवाज है। समय के साथ-साथ अब ईदी का ट्रेंड भी बदल गया। पहले ईदी में शीर की सामग्रियां भेजी जाती थी, लेकिन अब गिफ्ट्स, कपड़े, मिठाई देने का भी चलन हो गया है। ज्वैलरी में गोल्ड, डायमंड, चांदी तक ईदी में जाने लगी हैं। महंगाई की परवाह किए बगैर बहनों के लिए ईदी की खरीदी का दौर शुरू हो गया है।
भारत की रस्म-ओ-रिवाज है ईदी
लोग भले ही ईदी की रस्म को जरूरी मानकर हर हाल में निभाते हैं, लेकिन इस्लाम धर्म में इसका कोई संबंध नहीं है। कारी शफीकुर्रहमान बताते हैं कि ईदी की रस्मो-रिवाज इस्लाम में वर्षों से चली आ रही है। हालांकि, हदीसों में ईदी का कोई जिक्र नहीं मिलता है किसी पैगम्बर ने किसी को ईदी को दिया हो। कारी शफीकुर्रहमान भी इससे इत्तेफाक रखते हैं। उनके मुताबिक दी फालतू की चीजें हैं। इस्लाम से इसका कोई मतलब नहीं है। ईदी सुन्नत भी नहीं है। यह भारत-पाकिस्तान में पैदा हुई रस्मो-रिवाज है। हिन्दुस्तान में लेने-देने का हिराब है, इसलिए यहां इसका चलन शुरू हुआ। भारत-पाकिस्तान के अलावा दुनिया के किसी भी इस्लामी मुल्क में ईदी नहीं दी जाती है।