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1987 में चौधरी चरण सिंह का देहांत हुआ तो उनके लोकदल के 84 विधायक थे और उनके मजगर यानी मुसलमान, जाट, गूजर व राजपूत समीकरण की तूती बोलती थी। उसके बाद उनके बेटे अजित सिंह के हाथ में पिता की राजनीतिक विरासत आई तो उन्होंने पश्चिमी उप्र में ही बल्कि पूरे देश में अपनी मजबूत पहचान बनाई। 1990 में जब देश में जनता दल की सरकार बनी तो अजित सिंह ने उसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 7 बार सांसद और कई बार केंद्रीय मंत्री रहे उत्तर प्रदेश की बागपत सीट से वह 7 बार सांसद रहे। वह पहली बार राज्यसभा के लिए 1986 में चुने गए थे। 1987-88 तक अजित सिंह लोकदल (ए) और जनता पार्टी के अध्यक्ष रहे। 1989 में उन्होंने पहली बार लोकसभा चुनाव जीता। वीपी सिंह की सरकार में दिसंबर 1989 से नवंबर 1990 तक वह मिनिस्टर ऑफ इंडस्ट्री थे। 1991 में एक बार फिर लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंचे और पीवी नरसिम्हा राव की कैबिनेट में खाद्य मंत्री बने। 1996 में लोकसभा चुनाव जीते लेकिन 1998 में वह हार गए। इसके बाद उन्होंने अपनी पार्टी राष्ट्रीय लोकदल का गठन किया। 1999, 2004 और 2009 में लोकसभा चुनाव जीतकर फिर संसद पहुंचे। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में वह कृषि मंत्री रहे जबकि यूपीए सरकार में दिसंबर 2011 से 2014 तक वह नागरिक उड्डयन मंत्री के पद पर रहे।
मुलायम के लिए छोड़ दिया था मुख्यमंत्री पद साल 1989 में उत्तर प्रदेश राजनैतिक घटनाक्रमों से गुजर रहा था। जिससे राज्य की राजनीति जटिलताओं में बदलाव आया था। तत्कालीन जनता दल का गठन जनता पार्टी, जनमोर्चा, लोकदल (ए) और लोकदल (बी) के विलय से हुआ था। इस दल ने साल 1989 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की थी और चौधरी अजित सिंह के नाम का ऐलान पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में हुआ था। उस साल जनता दल ने 208 सीटें जीती थीं, और बहुमत में छह विधायकों की कमी थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने घोषणा की थी कि चौधरी अजित सिंह मुख्यमंत्री बनेंगे और मुलायम सिंह यादव उपमुख्यमंत्री होंगे। लेकिन मुलायम सिंह ने उपमुख्यमंत्री पद लेने से मना किया तो अजित सिंह ने उनके खातिर मुख्यमंत्री का पद ठुकरा दिया था। जिस प्रकार उनके पिता चौधरी चरण सिंह के भीतर किसान के और स्वाभिमान के गुण थे उसी प्रकार अजित सिंह के भीतर भी वो गुण विद्यमान रहे।
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