गैर-अल्कोहोलिकवसायुक्त यकृत रोग (NAFLD) क्या है?
नॉन-अल्कोहोलिक फैटी लीवर डिजीज (NAFLD),उन लोगों के लीवर में अतिरिक्त चर्बी के जमा होने से होता है जो शराब (अल्कोहल) का सेवन नहीं करते हैं। एनएएफ़एलडी मानव इतिहास में जिगर (यकृत) की सबसे अधिक प्रचलित की बीमारी है। व्यापकता अनुमानों से संकेत मिलता है कि यह रोग विश्व स्तर पर लगभग दो अरब लोगों को प्रभावित करता है। भारत में सामान्य जनसंख्या के लगभग 25-30% हिस्से में इस रोग के होने की आशंका है। सीएसआईआर-सीडीआरआई के चिकित्सा विशेषज्ञ डॉ. विवेक भोसले के अनुसार मोटे व्यक्तियों या मधुमेह वाले लोगों में यह एक सामान्य लक्षण है। आमतौर पर इस रोग के कोई विशेष लक्षण नहीं होते हैं। जिसकी वजह से इसे साइलेंट किलर भी कहते हैं। हालांकि, कुछ मरीजों में सामान्यतः पेट में दर्द हो सकता है जो पेट के मध्य या दाहिने ऊपरी हिस्से में केंद्रित हो सकता है। इसके अलावा थकान और कमजोरी भी हो सकती है। कुछ मामलों में लीवर बड़ा हो सकता है।
यह भी पढ़े : CCSU News : श्रीराम तकनीक पर आधारित होंगे भविष्य के मेमोरी डिवाइस,जर्मन वैज्ञानिक ने बताई खासियत पेट का अल्ट्रासाउंड, हालांकि, यकृत पर फैटी जमा दिखा सकता है और निदान की पुष्टि कर सकता है। रक्त परीक्षण में यकृत एंजाइमों जैसे एस्पार्टेट ट्रांसएमिनेस (एएसटी) और एलानिन ट्रांसएमिनेस (एएलटी)की हल्की अधिकता पाई जाती । हालांकि, कई मामलों में रक्त परीक्षण भी सामान्य हो सकता है। इनमें से कुछ लोगों को नॉन-अल्कोहलिक स्टीटोहेपेटाइटिस, या एनएएसएच – जो फैटी लीवर बीमारी का एक उन्नत रूप है विकसित हो सकता है, जिसमें लीवर में लगातार बढ्ने वाली सूजन एवं घाव के निशान बन जाते हैं जो आगे चलकर लीवर कैंसर में भी बदल सकते हैं जिसकी परिनीति यकृत प्रत्यारोपण या मृत्यु के रूप में ही होती है।
औषधि विकास में शामिल वैज्ञानिकों की टीम
सीएसआईआर-सीडीआरआई लखनऊ: डॉ विवेक भोसले, डॉ कुमारवेलु जे, डॉ मनीष चौरसिया, डॉ जिया उर गाईन, डॉ शशिधर, डॉ शरद शर्मा एवं डॉ एस.के. रथ सीएसआईआर-आईएचबीटी पालमपुर, डॉ. दिनेश शर्मा, डॉ. अमित कुमार अन्य रिसर्च सेंटर एवं अस्पताल, आईएलबीएस नई दिल्ली के निदेशक डॉ शिव कुमार सरीन एवं डॉ मनोज कुमार शर्मा एम्स नई दिल्ली आदि शामिल हैं।