यह भी पढ़ेंः होमगार्ड जवान ने परेशान होकर आत्मदाह करने का किया प्रयास, इसके पीछे रही ये बड़ी वजह, देखें वीडियो राह मुश्किल तो नई रणनीति पर विचार यूपी में प्रमुख विपक्षी दल के एक साथ आने से भाजपा को अपनी राह मुश्किल नजर आ रही है। इसलिए पार्टी नई रणनीति पर विचार कर रही है। उत्तर प्रदेश में अनुप्रिया पटेल की अपना दल और ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी अभी भाजपा से नाराज चल रही है। लिहाजा ऐसी परिस्थिति में भाजपा राज्य में अन्य दलों जैसे अजीत सिंह राष्ट्रीय लोकदल, निषाद पार्टी, महान दल के साथ ही अन्य दलों के संपर्क में हैं।
यह भी पढ़ेंः राम रहीम को सजा मिलने के बाद आश्रम में फिर हुआ ऐसा काम कि मच गया हड़कंप, देखें वीडियो नाराज नेताओं को साधने की जुगलबंदी समाजवादी पार्टी और बसपा का गठबंधन भले ही हो गया हो। लेकिन इसके बाद भी दोनों की राहें गठबंधन में आसान नहीं दिखाई देती। यहीं कारण है कि अब भाजपा की निगाहें उन नेताओं पर टिकी हैं जो कि चुनाव लड़ने की तैयारी में थे और सपा-बसपा गठबंधन के बाद उन नेताओं की उम्मीदों पर पानी फिर गया है। भाजपा दोनों दलों के ऐसे नेताओं से संपर्क साधने में लगी है जो अपनी पार्टी से नाराज हैं और अपने लोकसभा क्षेत्र में भाजपा को जीत दिला सकते हैं। महान दल और निषाद पार्टी के नेताओं से कहा गया है कि उनकी पार्टी को लोकसभा में सीट नहीं मिलेगी लेकिन उनके मनपसंद उम्मीदवारों को पार्टी की तरफ से एक-दो सीटों पर टिकट दिया जा सकता है। पिछले दिनों से जिस तरह से अनुप्रिया पटेल के अपना दल और ओमप्रकाश राजभर की सोहेल देव भारतीय समाज पार्टी ने उत्तर प्रदेश की योगी सरकार और प्रदेश बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोला है। इसको ध्यान में रखते हुए बीजेपी नेतृत्व अन्य छोटे दलों से बातचीत करने में लगा है।
जातियों और समाजिक संगठनों को साधने की जुगत भाजपा उत्तर प्रदेश में अलग-अलग जातियों के सामाजिक संगठनों के नेताओं को भी साधने की जुगत में है। इनसे भाजपा अपने पक्ष में प्रचार करने की अपील भी करेगी। भाजपा को लोकसभा चुनाव 2014 में उत्तर प्रदेश में 71 सीटों पर कब्जा जमाने में कामयाब रही थी।
यह भी पढ़ेंः युवती ने धर्म बदलकर शादी की तो परिजनों ने युवक को कर लिया अगवा, इसके बाद यह हुआ पश्चिम जीता तो सब जीता पश्चिम उप्र जीता तो सब जीता। यह बात सभी दल जानते हैं। क्योकि जीत की नीव इसी क्षेत्र से पड़ती है। प्रदेश हो या देश जिस दल की भी सरकारें रही। उसका दबदबा पश्चिम उप्र में कायम रहा। बसपा ने पश्चिम उप्र जीता तो बसपा की सरकार पूरे दमखम के साथ उप्र में बनी। ठीक ऐसे ही 2012 में समाजवादी पार्टी ने पश्चिम उप्र की 15 विधानसभा सीटों पर कब्जा किया तो उसकी सरकार सूबे में पूरे बहुमत से बनी। ठीक ऐसे ही 2017 में भाजपा के साथ हुआ। पश्चिम उप्र में भाजपा को 38 सीटों का लाभ मिला। नतीजतन उप्र में भाजपा की सरकार।