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उत्तर प्रदेश के मेरठ जनपद से लगभग 14 किलोमीटर दूर स्थित ऐतिहासिक गगोल गांव में स्थित महर्षि विश्वामित्र तपोभूमि तीर्थ में नित्य होने वाली पूजा के वक्त अनेक प्रकार के जानवर भी मंदिर स्थल के पास एकत्रित हो जाते हैं। कुत्ते, सियार, मोर, जलमुर्गी, बंदर जैसे जानवर एक साथ मंदिर परिसर में पहुंचते हैं और आरती के दौरान अपने भावों के श्रद्धासुमन अपने तरीके से भगवान को अर्पण करते हैं। जानवर होने के नाते उनको मंदिर में प्रवेश भले ही न करने दिया जाता हो लेकिन उनको भाव नित-प्रतिदिन भगवान के चरणों तक पहुंचते जरूर हैं।
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आपको बता दें कि गगोल तीर्थ में लगभग सात हजार वर्ष पुराने विश्वामित्र जी के मंदिर की बेहद मान्यता है। यूं तो वर्ष भर श्रद्धालुओं का तांता इस ऐतहासिक मंदिर में लगा रहता है परंतु ज्येष्ठ शुक्ल के दशहरे में यहां लगने वाले विशाल मेले में श्रद्धालुओं की असंख्य भीड़ यहां उमड़ती है। दूर-दराज से आने वाले भक्त यहां स्नान कर पूजा-अर्चना करते हैं। लोगों की मान्यता है कि यहां सच्चे भाव से मांगी गयी मन्नत अवश्य पूर्ण होती है। कहा जाता है कि ऋषि विश्वामित्र दशरथ से राम-लक्ष्मण को मांग कर यहीं पर लाये थे। राम ने अपने तीर के द्वारा भू-गर्भ से जल का स्रोत (किवदन्तियों में गंगा) प्रकट किया। इसलिए इस तीर्थ एवं गांव का नाम गंगलो (गंगा व जल-गंगोल) प्रसिद्ध हुआ।
यह भी कहा जाता है कि यह जोहड़ विश्वामित्र के यज्ञ कुण्ड का अवशेष हैं। खुदाई में यहां पर आज भी राख एवं बालू रेत निकलती है। पर्यटन विभाग ने इस तालाब को विस्तृत एवं पक्का बना दिया, लेकिन आज इसकी हालत दयनीय हो चुकी है। यहां पर एक धर्मशाला भी है जिसमे श्रद्धालु ठहरते हैं। वर्तमान में इसके महन्त महेश गोसांई व बाबा शिवदास है। दूसरा गया तीर्थ माने जाने के चलते पितृ उद्धार हेतु यहां लोग दूर-दूर से पिण्ड दान करने आते हैं। यहां पर भगवान राम, लक्ष्मण एवं शिव के मन्दिर भक्तों की आस्था के केंद्र हैं।