1828 में, इनको कजा विभाग में मुफ्ती के पद पर नियुक्त किया गया। इस्लामी अध्ययन और धर्मशास्त्र के विद्वान होने के अलावा, ये साहित्यिक थे। विशेष रूप से उर्दू, अरबी और फारसी साहित्य के। अल्लामा फजल ने क़ुरान को चार महीने में पूरी तरह से याद कर लिया था। अल्लामा फजल ने तेरह साल की उम्र में अरबी, फारसी और धार्मिक अध्ययन में पाठ्यक्रम पूरा कर लिया था।
अल्लामा फजल गहन ज्ञान और विद्वता के कारण “अल्लामा” की उपाधि पा गए थे। इनको महान सूफी के रूप में सम्मानित किया गया। उन्होंने और उनके बेटे अब्दुल अल-हक खैराबादी ने उत्तरी भारत में मदरसा खैराबाद की स्थापना की। जहाँ आज कई विद्वान शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। उन्होंने अरबी भाषा में रिसाला-ए-सौरतुल हिदिया लिखा और अस-सोरत अल हिंदिया नामक विद्रोह का एक लेख लिखा।
मेरठ में 1857 की क्रांति की शुरूआत करने में अल्लामा फजल का फतवा काफी कारगर रहा था। अल्लामा फजल के फतवे के का ही असर था जब 1857 में पूरा मुस्लिम समुदाय अंग्रेजों के खिलाफ बगावत कर उठा था। क्रांतिकारियों में बगावत का जज्बा पैदा करने वाले अल्लामा फजल का 19 अगस्त 1861 को इंतकाल हो गया। लेकिन इसके बाद भी भारतीय मुस्लिमों में अल्लामा फजल के फतवे का असर रहा।