मेरठ

यूपी के इस जिले की हवा हुई जहरीली, सांस लेने में लोगों को हो रही परेशानी

प्रदूषण के कारण लोगों को सांस लेने में खासी दिक्कत हो रही है।

मेरठMay 02, 2018 / 08:37 pm

Rahul Chauhan

मेरठ। देश में आए दिन प्रदूषण के कारण लोगों को गंभीर बीमारियों से जूझना पड़ता है। बावजूद इसके सरकार द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाए जाते। नतीजन लोग जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर हैं। दरअसल, मेरठ जिले के वातावरण में धुंध छाई हुई है। जिस कारण लोगों को सांस लेने में मुश्किल हो रही है। चिकित्सकों का कहना है कि जिन लोगों को सांस संबंधित बीमारी है वह घर से बाहर न निकले। अगर निकलना बहुत जरूरी है तो मास्क लगाकर ही बाहर निकले।
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बता दें कि मेरठ और उसके आसपास के क्षेत्र में इस समय गेंहू की कटाई पूरी हुई है। जिस कारण वातावरण में प्रदूषण फैल गया है। गेंहू के अवशेषों को जलाने से वातावरण में सांस लेना मुश्किल हो रहा है। कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों से आग्रह किया है कि वे कटाई के बाद गेहूं के अवशेषों को जलाने के बजाय उसकी जुताई करें ताकि मिट्टी तथा पर्यावरण को नुकसान न पहुंचे। कृषि विभाग के अधिकारियों ने बताया कि आमतौर पर गेहूं की कटाई के बाद उसके 80-90 फीसदी अवशेष का भूसा बन जाता है तथा जो भी हिस्सा बच जाता है वह खाद का काम करता है। इसलिये विभाग ने किसानों से अवशेषों को न जलाने की अपील की।
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इसे जलाने से मिट्टी में रहने वाले मित्र कीट जल जाते हैं तथा जहरीली गैसें जैसे कार्बन डाआईऑक्साइड,कार्बन मोनोआक्साइड,नाइट्रस आक्साइड पैदा होती हैं।, जिससे लोगों को सांस की तकलीफ, आंखों में जलन तथा चमड़ी के रोग होने का खतरा रहता है।
आसपास के शहरों ने बिगाड़ दी शहर की हवा

आसपास के शहरों में फिर से हवा बिगड़ गई है और वातावरण में जहरीली गैसों का स्तर बढ़ गया है। नतीजा यह है कि हवा की गुणवत्ता मानक यानी एयर क्वॉलिटी इंडेक्स (एक्यूआई) इतना खराब हो गया कि अपने शहर में लोगों का सांस लेना भी दूभर हो गया है। प्रदूषण विभाग के अनुसार जिले के वातावरण का एक्यूआई 400 तक पहुंच गया है। कूड़ा जलाना, पराली आदि जलाने जैसे मामलों में प्रभावी रोक न लगा पाने का परिणाम यह हुआ कि शहर की फिजा जहरीली होने लगी।
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ये हैं मानक

नाइट्रोजन डाईऑक्साइड की स्थिति सामान्य तौर पर 80 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर होना चाहिए। लेकिन बुधवार को यह 130 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर तक पहुंच गई। जान के लिए आफत बनी कार्बन मोनोऑक्साइड भी मानक से कहीं आगे चली गई। इसका मानक 4 मिग्रा प्रति घनमीटर है, लेकिन यह 6.74 मिग्री प्रति घनमीटर रही। पीएम-2.5 का स्तर मानक 60 के विपरीत 249.41 मिग्रा प्रति घनमीटर तक पहुंच गई।
डा0 राजनीश भरद्वाज के अनुसार वर्तमान में जिस तरह का मौसम हैं ऐसे मौसम में सांस के मरीजों को अपने आप सुरक्षा के उपाय करने होंगे। दवाइयों की डोज बढाने से एंटीबायोटिक की क्षमता और अधिक बढ जाएगी।

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