ग्लोबल बर्डेन डिसीज की रिपोर्ट के अनुसार मेरठ-एनसीआर 12 से 15 प्रतिशत मौतें वायु प्रदूषण के कारण हो रही हैं। 52 प्रतिशत की उम्र 70 वर्ष से कम थी। औद्योगिक क्षेत्रों, कंस्ट्रक्शन कारोबार, ईंट भट्ठों एवं सुलगते कूड़ा घरों के पास रहने वालों में सीओपीडी, अस्थमा, दिल के मरीज,खांसी, लंग्स कैंसर, चर्म रोग और गले में खराश की समस्या अधिक हो रही है। सल्फर एवं नाइट्रोजन डाई आक्साइड की मात्रा बढ़ने से सांस लेने के दौरान नलिका में अम्ल जमने से श्वसन तंत्र और हार्ट में विकार आ रहे हैं।
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जिले में प्रदूषण रोकने के सभी दावे ध्वस्त नजर आ रहे हैं। मेरठ महानगर में जगह—जगह खुले में रेत बिक रहा है। सड़कों पर धूल उड़ रही है। सड़क किनारे भवन निर्माण हो रहा है। रैपिड रेल कारिडोर का निर्माण भी इस समय चल रहा है। नियम है कि कार्यदायी कंपनी लगातार छिड़काव करे ताकि धूल न उड़े लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। धूल और धुएं के साथ हजारों जानलेवा बैक्टीरिया पनप रहे हैं। ये सेहत के लिए खतरा है। पीएम-2.5 व पीएम-10 अत्यंत सूक्ष्म कण हैं। ये रानाइटिस,अस्थमा,साइनोसाइटिस और सांस के अटैक का कारण बन रहे हैं।