मेरठ।देश का तिरंगा आन-बान-शान से हवा में लहराता है।क्या आप जानते हैं कि वह किन परिवर्तन के दौर से गुजर कर आज देश के मस्तक पर लहरा रहा है।तिरंगे के इतिहास के बारे में तो सब जानते होंगे, लेकिन हम यहां पर कुछ ऐसा बताने जा रहे हैं।जिसको शायद बहुत कम लोग जानते होगे या फिर इतिहास के जानकार चुनिंदा लोगों को ही तिरंगे का यह चौंकाने वाली जानकारी पता है।
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सूरज,चांद यूनियन जैक से चक्र का सफर
यह तो सबको पता है कि तिरंगा कैसे बना लेकिन तिरंगा जो वर्तमान रुप में है।अस्तित्व में आने से पहले कई बार बनाया गया था। कभी इसमें सूरज, चांद और तारे को, तो कभी इसमें ब्रिटेन के यूनियन जैक जोड़ा गया। लेकिन वर्तमान तिरंगा 1931 में देश के सामने आया था।1931 में कांग्रेस ने कराची के अखिल भारतीय सम्मेलन में केसरिया, सफेद और हरे तीन रंगों से बने इस ध्वज को सर्वसम्मति से स्वीकार किया।उस समय तिरंगे के बीच अशोक चक्र नहीं चरखा हुआ करता था। 22 जुलाई 1947 को भारतीय संविधान सभा की बैठक हुई।इसमें तिरंगे को आजाद भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया।जिसके बीच में अशोक चक्र था।
इन्हाेंने की थी तिरंगे की अभिकल्पना
सीसीएसयू विवि की इतिहास विभाग की प्रोफेसर डाॅ अराधना ने बताया कि हमारे राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे की अभिकल्पना 1916 में पिंगली वैंकैया ने की थी।आंध्र प्रदेश में जन्मे पिंगली वेंकैया ने ही सबसे पहले देश का खुद का राष्ट्रीय ध्वज होने की आवश्यकता जताई थी।1921 में विजयवाड़ा में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में पिंगली वैंकया महात्मा गांधी से मिले और उन्हें अपने द्वारा डिजाइन लाल और हरे रंग से बनाया हुआ झंडा दिखाया। गांधी जी ने उन्हें इस ध्वज के बीच में अशोक चक्र रखने की सलाह दी जो संपूर्ण भारत को एक सूत्र में बांधने का संकेत बने।दिसंबर 1923 में काकीनाड़ा में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन के दौरान पिंगली वेंकैया ने दो रंग वाले झंडे का प्रयोग किया।जिसके बीचों-बीच चरखा था।उनका यह विचार गांधी जी को बहुत पसन्द आया। गांधी जी ने उन्हें राष्ट्रीय ध्वज का प्रारूप तैयार करने का सुझाव दिया।
हिन्दुओं के इस प्रतीक को डालने की दी थी सलाह
डाॅ अराधना के अनुसार अखिल भारतीय संस्कृत कांग्रेस ने सन् 1924 में ध्वज में केसरिया रंग और बीच में गदा डालने की सलाह इस तर्क के साथ दी कि यह हिंदुओं का प्रतीक है। फिर इसी क्रम में किसी ने गेरुआ रंग डालने का विचार इस तर्क के साथ दिया कि ये हिन्दू, मुसलमान और सिख तीनों धर्म को व्यक्त करता है।काफी तर्क-वितर्क के बाद भी जब सब एकमत नहीं हो पाए तो सन् 1931 में अखिल भारतीय कांग्रेस के ध्वज को मूर्त रूप देने के लिए सात सदस्यों की एक कमेटी बनाई गई।
कराची में तय हुआ था वर्तमान स्वरूप
डाॅ अराधना कहती हैं कि 1931 में ही कराची में आयोजित कांग्रेस कमेटी की बैठक में पिंगली वेंकैया द्वारा तैयार ध्वज, जिसमें केसरिया, सफेद और हरे रंग के साथ केंद्र में अशोक चक्र स्थित करने पर सहमति बन गई। इसी ध्वज के नीचे आजादी के दीवानों ने कई आंदोलन किए और 1947 में अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया। 22 जुलार्इ 1947 को भारतीय संविधान सभा की बैठक हुई। इसमें तिरंगे को आजाद भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया।
डा राजेन्द्र प्रसाद कमेटी ने घोषित किया राष्ट्रघ्वज
डाॅ अराधना के अनुसार आजादी की घोषणा से कुछ दिन पहले फिर कांग्रेस के सामने ये प्रश्न आ खड़ा हुआ कि अब राष्ट्रीय ध्वज को क्या रूप दिया जाए।इसके लिए फिर से डॉ. राजेंद्र प्रसाद के नेतृत्व में एक कमेटी बनाई गई और तीन सप्ताह बाद 14 अगस्त को इस कमेटी ने अखिल भारतीय कांग्रेस के ध्वज को ही राष्ट्रीय ध्वज के रूप में घोषित करने की सिफारिश की। 15 अगस्त 1947 को तिरंगा हमारी आजादी और हमारे देश की आजादी का प्रतीक बन गया।