यह भी पढ़ेंः विश्वविद्यालय के इस आदेश ने कम कर दिया पीएचडी थीसिस का वजन मेरठ में खुले 50 मेडिकल स्टोर आज प्रदेश के विभिन्न जिलों में जेनरिक दवाओं के स्टोर काम कर रहे हैं। जबकि 2014 से पहले इसकी संख्या सीमित मात्रा में थी। अधिकतर स्टोर 2015-16 के बीच में खुले हैं। अकेले मेरठ में ही जेनरिक दवाओं के करीब 50 मेडिकल स्टोर खुल गए हैं।
यह भी पढ़ेंः वकील अब अपनाएंगे यह रणनीति, इससे बुलंद होगी उनकी मांग 10 से 12 फीसदी की वृद्धि हुर्इ पहले की अपेक्षा अगर आज गौर करें तो जेनरिक दवाओं की बिक्री में 10 से 12 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। यह आंकड़ा निरंतर बढ़ रहा है। निमोसेट, वोवो, एलसिनेक, बूट्राफ्लाक्स जैसी दवाएं प्रचलन में आ रही हैं। केमिस्ट ड्रगिस्ट एसोसिएशन के राजनीश कौशल के मुताबिक जेनरिक दवाओं का कारोबार लगातार बढ़ रहा है। हालांकि बिक्री अभी भी अपेक्षा अनुरूप नहीं है। अधिकतर डाॅक्टर अभी भी जेनरिक दवाएं लिखने से परहेज करते हैं। आम जनता भी उससे वाफिक नहीं है। अगर सरकार कोई कानून बनाती है तो स्थिति में काफी बदलाव आ जाएगा। केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद जेनरिक दवाओं का प्रयोग एक-दो साल में बढ़ा है।
यह भी पढ़ेंः बिजली वालों का अब नहीं चलेगा यह बहाना, घर बैठे एक क्लिक पर खुल जाएगी पोल तीन फेज में होता है परीक्षण ड्रग इंस्पेक्टर नरेश मोहन के अनुसार इनके साल्ट का तीन फेज में परीक्षण होता है। गहन परीक्षण व शोध के बाद ड्रग कंट्रोल बोर्ड की अनुमति मिलने पर इन्हें प्रचलन में लाया जाता है। जेनरिक दवाओं का दाम सरकार की ओर से तय किया जाता है। जबकि बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दाम मनमाने होते हैं। यही कारण है कि दोनों के दाम में काफी अंतर होता है।
यह भी पढ़ेंः इस क्रांतिधरा पर 15 दिन में बन गया नया इतिहास…पर इससे खूब परेशान रहे लाेग! लोगों में जागरूकता का आभाव ड्रग इंस्पेक्टर का कहना है कि जेनरिक दवाओं का यह है मतलब है कि किसी भी बीमारी के इलाज के लिए डाक्टर जो दवा लिखते हैं ठीक उसी दवा के साल्ट वाली जेनरिक दवाएं उससे काफी कम कीमत पर आपको मिल सकती हैं। दवा के दाम का यह अंतर पांच से दस गुना तक हो सकता है, लेकिन लोगों में जेनरिक दवाओं के लिए जागरुकता नहीं है। यह भी जानना आवश्यक है कि देश की लगभग सभी नामी दवा कंपनियां ब्रांडेड दवाओं के साथ उसी साल्ट पर कम कीमत वाली जेनरिक दवाएं भी बनाती हैं। लेकिन ज्यादा लाभ के चक्कर में डाक्टर और कंपनियां लोगों को इस बारे में कुछ नहीं बताते। इसी वजह से लोग महंगी दवाएं खरीदने को विवश होते हैं।