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बैक्टीरिया कल्चर जरूरी
डॉक्टर संजीव खरे के अनुसार आजकल डॉक्टर बुखार या किसी बैक्टीरियल इंफेक्शन होने पर भी बिना किसी जांच के एंटीबायोटिक्स शुरू कर देते हैं, जबकि एंटीबायोटिक्स चलाने से पहले मरीज का बैक्टीरिया कल्चर कराना जरूरी होता है। इससे यह पता चल जाता है कि मरीज को कौनसी एंटीबायोटिक्स सूट करेगी। अमूमन यही होता है कि चिकित्सक 10 से 15 दिन तक एंटीबायोटिक्स चला देता है जब दवाएं असर नहीं करती हैं तो उसका बैक्टीरिया कल्चर करवाते हैं।
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सिर्फ आर्मी मेडिकल कोर में शुरू हुई एंटीबायोटिक्स पॉलिसी
डॉ.खरे के अनुसार एंटीबायोटिक्स पॉलिसी वर्तमान में देश के आर्मी मेडिकल कोर में ही शुरू की गई है। इस पॉलिसी में पूरी गाइडलाइन होती है, जिसमें एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल किन बीमारियों में करना है, कैसे करना है और डोज क्या है। जैसे सभी नियम तय किए गए हैं। इसके अलावा हाई डोज की एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल कब करना है आदि जानकारी दी गई है। वर्ष 2011 में एंटीमाइक्रोबिल रेजिस्टेंट पॉलिसी तो बनाई गई, लेकिन इसे ठीक तरह से लागू नहीं किया गया है।
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ऐसे बचे एंटीबायोटिक्स के इस्तेमाल से
डॉ. संजीव खरे कहते हैं कि हमेशा चिकित्सीय परामर्श से ही एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल करें। फीवर होने पर तुरंत एंटीबायोटिक्स न लें। बैक्टिरियल डीजीज होने पर ही इसका इस्तेमाल करें। हमेशा एंटीबायोटिक्स की डोज को पूरा करें। डॉ. खरे कहते हैं कि 80 के दशक में झोलाछाप डॉक्टरों द्वारा प्राइमरी टीबी में हाई एंटीबायोटिक्स के इस्तेमाल से मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट टीबी विकसित हो गई है। उन्होंने बताया कि एमडीआर और एक्सडीआर टीबी के एक कारण में यह भी शामिल है कि डॉक्टर या मरीज की लापरवाही से दवाओं को बीच में छोड़ देना, जिसकी वजह से टीबी की दवाएं असर करना बंद कर देती हैं। एंटीबायोटिक्स की डोज पांच से सात दिन की होती है, जो लोग बीच में ही एंटीबायोटिक्स खाना बंद कर देते हैं, उससे बैक्टीरिया पूरी तरह से मरते नहीं हैं। बाद में यह बैक्टीरिया प्रतिरोध पैदा कर लेते हैं, इसलिए एंटीबायोटिक्स की डोज हमेशा पूरी करनी चाहिए।
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डा0 सुनील विशेन बताते हैं कि डायरिया होने पर तुरंत एंटीबायोटिक्स नहीं लेनी चाहिए। उन्होंने बताया कि अक्सर डायरिया होने पर लोग एंटीबायोटिक्स खाने लगते हैं, लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए। शुरुआती दौर में डायरिया को ओआरएस और इलेक्ट्रॉल से ही कंट्रोल करना चाहिए। अगर डायरिया के साथ फीवर आए तब भी चिकित्सीय परामर्श के बाद एंटीबायोटिक्स लेनी चाहिए।