ताजा मामला कंपोजिट विद्यालय रणवीर पुर ब्लॉक परदहा का है। वेतन अवरुद्ध होने से परेशान शिक्षिका ने डेढ़ साल ऑफिस का चक्कर लगाने के बाद विभागीय अधिकारियों से शिकायत करने के साथ साथ मुख्यमंत्री से न्याय की गुहार लगाई है।
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को लेकर रुका वेतन चर्चा
आपको बता दें कि कंपोजिट विद्यालय की शिक्षिका सीमा का दो दिन का वेतन गुणवत्ता को लेकर जिला समन्यवकों द्वारा बाधित कर दिया गया। वेतन लगवाने के लिए परेशान शिक्षिका बीएसए ऑफिस का चक्कर लगाती रही, परंतु ऑफिस में बाबुओं का ऐसा मकड़जाल है जिसमे वह शिक्षिका उलझ कर रह गई। शिक्षिका को न तो बीएसए से मिलने दिया गया न ही उसका वेतन लगाया गया, अपितु उससे एक दिन का वेतन लगाने हेतु 20 हजार की दर से कुल चालीस हजार रुपए की मांग ऑफिस के बाबू जितेंद्र सिंह द्वारा की गई।
आपको बता दें कि कंपोजिट विद्यालय की शिक्षिका सीमा का दो दिन का वेतन गुणवत्ता को लेकर जिला समन्यवकों द्वारा बाधित कर दिया गया। वेतन लगवाने के लिए परेशान शिक्षिका बीएसए ऑफिस का चक्कर लगाती रही, परंतु ऑफिस में बाबुओं का ऐसा मकड़जाल है जिसमे वह शिक्षिका उलझ कर रह गई। शिक्षिका को न तो बीएसए से मिलने दिया गया न ही उसका वेतन लगाया गया, अपितु उससे एक दिन का वेतन लगाने हेतु 20 हजार की दर से कुल चालीस हजार रुपए की मांग ऑफिस के बाबू जितेंद्र सिंह द्वारा की गई।
परेशान शिक्षिका ने अब बीएसए,डीएम,महानिदेशक और मुख्य मंत्री से न्याय की गुहार लगाई है। गौर करने वाली बात यह है कि शिक्षिका के ही साथ बाधित किए गए अन्य लोगों का वेतन बहाल कर दिया गया है।
परेशान शिक्षिका सीमा ने आरोप लगाते हुए कहा है कि बीएसए ऑफिस के बाबू उसका मानसिक शोषण कर रहे। उसे दूसरे के नंबर से फोन करके धमकाया जा रहा कि अपनी शिकायत वापस ले लो नहीं तो तुम्हे सस्पेंड करके दूर भेज दिया जायेगा। उनके कृत्यों से वह इस कदर परेशान हो गई है कि उसके साथ कभी भी कुछ भी हो सकता है। उसने कहा कि अगर उसके साथ कुछ भी होता है तो इसके लिए जिम्मेदार सिर्फ बीएसए ऑफिस के बाबू ही होंगे।
परेशान शिक्षिका सीमा ने आरोप लगाते हुए कहा है कि बीएसए ऑफिस के बाबू उसका मानसिक शोषण कर रहे। उसे दूसरे के नंबर से फोन करके धमकाया जा रहा कि अपनी शिकायत वापस ले लो नहीं तो तुम्हे सस्पेंड करके दूर भेज दिया जायेगा। उनके कृत्यों से वह इस कदर परेशान हो गई है कि उसके साथ कभी भी कुछ भी हो सकता है। उसने कहा कि अगर उसके साथ कुछ भी होता है तो इसके लिए जिम्मेदार सिर्फ बीएसए ऑफिस के बाबू ही होंगे।
अधिकारियों के कार्यशैली पर उठा सवाल
गुणवत्ता के नाम पर वेतन रोकना जिले में चर्चा का विषय बना हुआ है वहीं मजे की बात यह है कि चहेतों के स्कूल न जाने पर भी कोई कार्रवाई नहीं होती है।
नाम न छापने की शर्त पर शिक्षकों ने कहा कि सपोर्टिव सुपरविजन के नाम पर उनका आर्थिक और मानसिक शोषण किया जाता है। बीएसए ऑफिस से जिला समन्वयक स्कूलों में सुपरविजन के लिए जाते हैं, परंतु बाबुओं की मिली भगत से गुणवत्ता के नाम पर वेतन बाधित कर देते हैं। बाद में वेतन बहाली पर उनको मोटा कमीशन मिल जाता है। वहीं कुछ अध्यापकों का कहना है कि इन बाबुओं की संपत्ति की यदि जांच हो जाए तो असलियत खुद ब खुद सामने आ जाएगी।
इस संबंध में जब जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी संतोष उपाध्याय ने कहा कि मामला संज्ञान में है और जांच करके नियमानुसार कार्रवाई की जायेगी। वहीं सवाल यह है कि इतना सब कुछ होने पर भी बीएसए कार्यालय के जिम्मेदार आंखें बंद किए हुए हैं। उनकी नाक के नीचे हो रहे इस खेल की जानकारी उन्हें न हो ऐसा तो असंभव प्रतीत होता है।