पर्वत के चारों तरफ से गोवर्धन शहर और कुछ गांवों को देखा जा सकता है। इसके पहले हिस्से में जतीपुरा—मुखारविंद मंदिर, पूंछरी का लौठा प्रमुख स्थान है तो दूसरे हिस्से में राधाकुंड, श्याम कुंड और मानसी गंगा प्रमुख स्थान है।
1. जतीपुरा—मुखारविंद: मथुरा के गोवर्धन में स्थित वल्लभ संप्रदाय का प्रमुख केन्द्र है। यहीं गोवर्धन में श्रीनाथजी का प्राचीन मन्दिर है, जो अब जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है। जतीपुरा में ‘अष्टछाप’ के कवि सूरदास आदि कीर्तन किया करते थे। श्रीवल्लभाचार्य एवं विट्ठलनाथ जी की यहां बैठकें हैं। वल्लभ सम्प्रदाय के अनेक मन्दिर जतीपुरा में हैं, जो इसकी प्राचीनता तथा ऐतिहासिकता को दर्शाते हैं।
2. पूंछरी का लौठा: भगवान कृष्ण के मित्र थे पूंछरी का लौठा। पहले पहलवान को लौठा कहा जाता था। यहां मंदिर में श्री हनुमानजी का विग्रह स्थापित है। ये परिक्रमा मार्ग के दौरान रास्ते में पड़ता है। ये राजस्थान के भरतपुर जिले के अंतर्गत आता है। यह छोटा सा स्थान है। इसके आसपास बंदरों का जमावड़ा रहता है। गोवर्धन परिक्रमा करने वाले श्रद्धालुओं के लिए जरूरी है कि वे पूंछरी का लौठा के दर्शन कर अपनी हाजिरी लगाएं। यहां हाजिरी नहीं लगाई तो परिक्रमा पूरी नहीं मानी जाती है।
3. कुसुम सरोवर: यह सरोवर गोवर्धन और राधा कुंड के बीच पवित्र गोवर्धन हिल पर एक ऐतिहासिक बलुआ पत्थर की स्मारक है। स्मारक के पास नारद कुंड हैं, जहां नारद ने भक्ति सूत्र छंद लिखे थे। साथ ही यहां श्री राधा वाना बिहारी मंदिर भी मौजूद है। यह स्थान देखने में बहुत ही खूबसूरत है जो पर्यटकों को काफी हद तक अपनी ओर आकर्षित करता है। कुसुम सरोवर वही स्थान है जहां भगवान कृष्ण राधा से मिला करते थे।
4. मनसा देवी मंदिर: मनसा देवी मंदिर श्री वज्रनाभ के ही पधराए हुए एकचक्रेश्वर महादेव का मंदिर है। गिरिराज के ऊपर और आसपास गोवर्धन गांव बसा है तथा एक मनसादेवी का मंदिर है।
5. मानसी गंगा: मानसीगंगा पर गिरिराज का मुखारविन्द है, जहां उनका पूजन होता है तथा आषाढ़ी पूर्णिमा और कार्तिक की अमावस्या को मेला लगता है। मानसी गंगा को भगवान कृष्ण ने अपने मन से उत्पन्न किया था। यहां लोग दण्डौती परिक्रमा करते हैं। दण्डौती परिक्रमा इस प्रकार की जाती है कि आगे हाथ फैलाकर जमीन पर लेट जाते हैं और जहा तक हाथ फैलते हैं, वहां तक लकीर खींचकर फिर उसके आगे लेटते हैं।
6. हरजीकुंड: परिक्रमा के रास्ते में ही एक कुंड स्थित है जिसे हरजी कुंड कहा जाता है। इस स्थान पर भगवान श्रीकृष्ण अपने ग्वाल सखाओं के साथ गाय चराने आते थे। जब हम बड़ी परिक्रमा पूरी कर लेते है तो उसके बाद आता है चूतर टेका। यह बेहद पुराना स्थान है, यहां भगवान लक्ष्मण, भगवान राम, सीता माता और राधा-कृष्ण के मंदिर हैं।
7. विट्ठल नामदेव मंदिर: परिक्रमा मार्ग पर राधा कुंड से पहले विट्ठल नामदेव मंदिर आता है। 8. राधाकुंड: गोवर्धन पर्वत से तीन मील दूर राधाकुण्ड स्थित है। माना जाता है कि इस कुंड को राधा ने अपने कंगन से खोदकर बनाया था। राधाकुंड और श्यामकुंड में नहाने से गौहत्या का पाप भी खत्म हो जाता है।
9. दानघाटी: मथुरा से दीघ को जाने वाली सड़क गोवर्धन पार करके जहां पर निकलती है, वह स्थान दानघाटी कहलाता है। यहां भगवान् दान लिया करते थे। यहां दानरायजी का मंदिर है। इसी गोवर्धन के पास 20 कोस के बीच में सारस्वतकल्प में वृंदावन था। इसी के आसपास यमुना बहती थीं।
10. श्यामकुंड: श्याम कुंड का निर्माण भगवान श्रीकृष्ण ने छड़ी से किया था। उन्होंने सभी तीर्थों को उसमें विराजमान किया और इसमें स्नान भी किया। कार्तिक महीने की कृष्णाष्टमी के दिन यहां स्नान का विशेष महत्व है।