तब तब गोविन्द स्वामी बाहर से बोले ये तो वहां खेलते खेलते बंसी बजा रहे थे, विश्वास ना हो तो आकर देखलो। इनके दुपट्टे का टुकड़ा वहीं लटका है। जब गुसाईं जी ने वहां जाकर देखा तो टुकड़ा वहीं था। तब पुनः आकर श्रीनाथ जी से पूछा इतना उतावलापन क्यों किया। तब श्रीनाथ जी ने कहा कि मैं तो वहा बैठा था। आपको स्नान करके मन्दिर आते देखा तो दौड़ पड़ा। वहीं गिरते गिरते रह गया और दुपट्टा का टुकड़ा वहीं रह गया। तब तब से गुसाईं जी ने ऐसी व्यवस्था कर दी कि तीन बार घंटा बजाने, तीन बार शंखनाद कर और कुछ देर रुककर ठाकुरजी का द्वार खोला जाए ताकि बजाकर ओर कुछ देर रुक कर ठाकुर जी का किवाड़ खोला जाए ताकि ठाकुर जी जहां कहीं भी हों, आराम से आ सकें। इसी कारण आज भी नाथद्वारा में उत्थापन के दर्शन के कुछ देर पहले ही शंखनाद होता है, फिर दर्शन खोले जाते हैं।