कोर्ट में नहीं हो सकी सुनवाई, तारीख बढ़ी
मथुरा में काफी समय से श्री कृष्ण जन्मस्थान और शाही ईदगाह की जमीन को लेकर विवाद चल रहा है। इस मामले में 15 मार्च को सुनवाई होनी थी, लेकिन जिला जज मौजूद नहीं थे। इसलिए सुनवाई की तारीख आगे बढ़ा दी गई है। मामले में पैरवी कर रहे अधिवक्ता महेंद्र प्रताप सिंह ने बताया “पिछली सुनवाई के दौरान इस मामले में बहस पूरी हो चुकी थी। इस मामले में कोर्ट को अपना फैसला सुनाना था। लेकिन ज्यादा व्यस्त होने के चलते कोर्ट ने गुरुवार को मामले की सुनवाई टाल दी है। अब अगली सुनवाई 23 फरवरी को होगी।
मथुरा में काफी समय से श्री कृष्ण जन्मस्थान और शाही ईदगाह की जमीन को लेकर विवाद चल रहा है। इस मामले में 15 मार्च को सुनवाई होनी थी, लेकिन जिला जज मौजूद नहीं थे। इसलिए सुनवाई की तारीख आगे बढ़ा दी गई है। मामले में पैरवी कर रहे अधिवक्ता महेंद्र प्रताप सिंह ने बताया “पिछली सुनवाई के दौरान इस मामले में बहस पूरी हो चुकी थी। इस मामले में कोर्ट को अपना फैसला सुनाना था। लेकिन ज्यादा व्यस्त होने के चलते कोर्ट ने गुरुवार को मामले की सुनवाई टाल दी है। अब अगली सुनवाई 23 फरवरी को होगी।
अब आइए बताते हैं कि पूरा मामला क्या है?
ऐसा दावा है कि औरंगजेब ने श्रीकृष्ण जन्मस्थली पर बने प्राचीन केशवनाथ मंदिर को तोड़कर 1669-70 में शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण कराया था। हालांकि 1935 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 13.37 एकड़ की विवादित भूमि बनारस के राजा कृष्ण दास को अलॉट कर दी थी। 1951 में श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट ने यह भूमि अधिग्रहीत कर ली। यह ट्रस्ट 1958 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ के नाम से रजिस्टर्ड हुआ। 1977 में इसका नाम बदलकर श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान रजिस्टर्ड कराया गया। इसके बाद 1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान और शाही ईदगाह कमेटी के बीच समझौते में 13.37 एकड़ जमीन का स्वामित्व ट्रस्ट को मिला। ईदगाह मस्जिद का मैनेजमेंट ईदगाह कमेटी को दिया गया।
ऐसा दावा है कि औरंगजेब ने श्रीकृष्ण जन्मस्थली पर बने प्राचीन केशवनाथ मंदिर को तोड़कर 1669-70 में शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण कराया था। हालांकि 1935 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 13.37 एकड़ की विवादित भूमि बनारस के राजा कृष्ण दास को अलॉट कर दी थी। 1951 में श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट ने यह भूमि अधिग्रहीत कर ली। यह ट्रस्ट 1958 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ के नाम से रजिस्टर्ड हुआ। 1977 में इसका नाम बदलकर श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान रजिस्टर्ड कराया गया। इसके बाद 1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान और शाही ईदगाह कमेटी के बीच समझौते में 13.37 एकड़ जमीन का स्वामित्व ट्रस्ट को मिला। ईदगाह मस्जिद का मैनेजमेंट ईदगाह कमेटी को दिया गया।
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आप जानते हैं कि विवाद की वजह क्या है?यह विवाद 13.37 एकड़ जमीन पर मालिकाना हक से जुड़ा हुआ है। दावा किया गया है कि 12 अक्टूबर 1968 को श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान ने शाही मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट के साथ एक समझौता किया था। इसमें 13.7 एकड़ जमीन पर मंदिर और मस्जिद दोनों बनने पर सहमति बनी थी। इसके तहत श्रीकृष्ण जन्मस्थान के पास 10.9 एकड़ जमीन का मालिकाना हक है और 2.5 एकड़ जमीन का मालिकाना हक शाही ईदगाह मस्जिद के पास है।
अब जानते हैं इस पूरे विवाद की जड़ क्या है?
कोर्ट में दावा किया गया है कि 12 अक्टूबर 1968 को श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान और शाही मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट के साथ जो समझौता हुआ था। उसमें 13.7 एकड़ जमीन पर मंदिर और मस्जिद दोनों रहने की बात तय हुई थी, लेकिन अभी श्रीकृष्ण जन्मस्थान के पास 10.9 एकड़ जमीन का मालिकाना हक है, जबकि ढाई एकड़ जमीन का मालिकाना हक शाही ईदगाह मस्जिद के पास है। हिंदू पक्ष शाही ईदगाह मस्जिद को अवैध तरीके से कब्जा करके बनाया गया ढांचा मानता है। इस जमीन पर वह अपना हक होने का दावा करता है। इसलिए शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने और ये जमीन भी श्रीकृष्ण जन्मस्थान को देने की मांग की गई है।
कोर्ट में दावा किया गया है कि 12 अक्टूबर 1968 को श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान और शाही मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट के साथ जो समझौता हुआ था। उसमें 13.7 एकड़ जमीन पर मंदिर और मस्जिद दोनों रहने की बात तय हुई थी, लेकिन अभी श्रीकृष्ण जन्मस्थान के पास 10.9 एकड़ जमीन का मालिकाना हक है, जबकि ढाई एकड़ जमीन का मालिकाना हक शाही ईदगाह मस्जिद के पास है। हिंदू पक्ष शाही ईदगाह मस्जिद को अवैध तरीके से कब्जा करके बनाया गया ढांचा मानता है। इस जमीन पर वह अपना हक होने का दावा करता है। इसलिए शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने और ये जमीन भी श्रीकृष्ण जन्मस्थान को देने की मांग की गई है।
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याचिकाकर्ता अधिवक्ता महेंद्र प्रताप सिंह ने श्रीकृष्ण जन्मस्थान परिसर से शाही मस्जिद ईदगाह हटाने की मांग की है। इस मामले में पहले सुनवाई योग्य बिंदुओं पर सिविल जज सीनियर डिवीजन सुनवाई कर चुके हैं। इसके बाद 8 दिसंबर 2022 को हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता और दिल्ली निवासी उपाध्यक्ष सुरजीत सिंह यादव ने कोर्ट में दावा पेश किया। इसमें कहा गया “ईदगाह का निर्माण मुगल बादशाह औरंगजेब ने भगवान श्रीकृष्ण की 13.37 एकड़ जमीन पर बने मंदिर को तोड़कर कराया था।” इस याचिका में श्री कृष्ण जन्म स्थान सेवा संघ बनाम शाही मस्जिद ईदगाह के बीच साल 1968 में हुए समझौते को भी चुनौती दी गई है। इसके बाद सिविल जज सीनियर डिवीजन तृतीय सोनिका वर्मा की अदालत ने सभी प्रतिवादियों को नोटिस दिया था। यह भी पढ़ें
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पूजा स्थल अधिनियम के दायरे में आता है मामला18 सितंबर 1991 को केंद्र सरकार की ओर से पारित किए गए पूजा स्थल अधिनियम के दायरे में यह मामला आता है। इसके अनुसार, जो पूजा स्थल या धार्मिक मान्यता वाली जगह अगस्त 1947 के 15वें दिन जिस हालत में थी। उसे उसी रूप में बनाए रखने का नियम बनाया गया है। इस कानून के तहत किसी भी पूजा स्थल के रूपांतरण पर रोक है। इस मामले में अब तक 13 मुकदमे विभिन्न अदालतों में दाखिल हुए हैं, इसमें से दो मुकदमे खारिज हो चुके हैं।
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