सभी लोग ये जानते हैं कि राधा रानी का जन्म बरसाना में हुआ था, लेकिन वास्तविकता में राधा रानी का जन्म बरसाने में नहीं, बल्कि रावल गांव में हुआ था। कहा जाता है राजा वृषभानु यमुना में स्नान के लिए गए थे। इसी दौरान उन्हें कमल पुष्प में राधा रानी मिली थीं। इसलिए वह यहां घुटमन चलते हुए बाल स्वरूप में विराजमान हैं। राधा रानी को यहां लाडली जी के नाम से जाना जाता है। मथुरा डिस्ट्रिक्ट मेमोरियल बुक और ब्रज वैभव पुस्तक के साथ-साथ गर्ग संहिता, ब्रज परमानंद सागर में भी रावल गांव का जिक्र है। यहीं वृषभानु के राजमहल और निवास थे। इसलिए इस स्थान को रावल कहा जाता है। मुगलों के आक्रमण और यमुना में आई बाढ़ से मंदिर को काफी नुकसान हुआ था। 1924 के दौरान आई बाढ़ में लाड़ली जी मंदिर पूरी तरह से तबाह हो गया था। वृंदावन के सेठ हरगुलाल ने इसका जीर्णोद्धार कराया था। आज देश के कोने-कोने से यहां श्रद्धालु लाडली जी के दर्शन के लिए पहुंचते हैं।
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कहा जाता है वृषभानु दुलारी राधा रानी भगवान श्री कृष्ण से करीब साढ़े 11 महीने बड़ी थीं, लेकिन उन्होंने अपने नेत्र नहीं खोले थे। राजा वृषभान ने उन्हें एक सेे एक बड़े वैद्य को दिखाया, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। रावल गांव से करीब 8 किलोमीटर दूर जब गोकुल में कान्हा के जन्म पर उत्सव हुआ तो नंद उत्सव में बधाई देने राजा वृषभानु और रानी कीर्ति लाड़ली जी को भी साथ ले गए थे। कहते हैं कि उस दौरान राधारानी घुटने के बल चलकर कान्हा के पालने तक पहुंच गई और श्री कृष्ण को नजर भरके देखते हुए राधा रानी ने पहली बार अपनी आंखें खोली थीं।
लाडली जी के मंदिर के ऊपर उगा है अद्भुत पेड़ लाड़ली जी के मंदिर के पुजारी ने बताया कि मंदिर की छत पर एक वृक्ष उगा है। इस वृक्ष की खासियत यह है कि इसकी जड़े नहीं हैं। इतना ही नहीं यह 12 महीने हरा-भरा रहता है। पुजारी ने बताया कि जब से होश संभाला है, इस वृक्ष को इसी स्वरूप में देखा हैं। उन्होंने बताया कि लाड़ली के पालने के ऊपर मंदिर की गुम्मद पर लगे इस पेड़ को मन्नत का पेड़ भी कहा जाता है। यहां आने वाले श्रद्धालु अपने हाथों से मन्नत का धागा बांधकर जाते हैं और मन्नत पूरी होने पर खाेलने भी आते हैं।