मथुरा

Holi 2020 कान्हा की नगरी में सर्द हवाओं के बीच दो देशों की संस्कृति व सभ्यता का मिलन

-वृंदावन के वात्सल्य ग्राम में विदेशी भक्तों ने जमकर खेली होली-हमारी अतिथि देवो भव की संस्कृति सबका दिल छूती हैः साध्वी ऋतम्भरा

मथुराFeb 07, 2020 / 07:08 pm

jitendra verma

Holi 2020 कान्हा की नगरी में सर्द हवाओं के बीच दो देशों की संस्कृति व सभ्यता का मिलन

मथुरा। कान्हा की नगरी में सर्द हवाओं के बीच दो देशों की संस्कृति व सभ्यता का मिलन हुआ। अमेरिका न्यू टाउन से आये विदेशियों ने वात्सल्य ग्राम की भूमि पर राधा कृष्ण बनकर जमकर होली खेली। 7 दिनों में ही हिन्दुस्तानी संस्कृति को अपने मे समाहित करने वाले विदेशियों ने जमकर लट्ठमार व फूलों को होली खेली । इस दौरान विदेशियों ने राजस्थानी लोकगीतों व डांडिया की भी मनमोहक प्रस्तुति दी, जिसे देख मौजूद श्रोता अपने आपको ताली बजाने से नहीं रोक पाए। सिलसिला देर रात तक चला। मौजूद लोग इसमें सराबोर नजर आए।
विदेशियों ने जमकर खेली होली
कान्हा का प्रेम रंग ही इतना मनमोहक और गहरा है कि जो एक बार इसको देख भर ले, वह इसमें सराबोर होना चाहता है फिर चाहे वह हिन्दुस्तानी हो या सात समंदर पार से आये सैलानी। विदेशी सैलानी भारत में आकर सात दिनों में ही भारतीय संस्कृति से इतने प्रभावित हुए कि अब कान्हा के प्रेम रंग से अमेरिका के न्यू टाउन को रंगते नजर आएंगे। वृन्दावन के वात्सल्य ग्राम में भारतीय संस्कृति को अपने आप में उतार लिया और बिना किसी झिझक के इतने विश्वास से राधा कृष्ण की लीलाओं को जीवंत किया। अपनी कला से सबको रिझाने वाले विदेशी कृष्ण व राधा ने भाव साझा करते हुए कहा कि हम लोग यहाँ भारतीय संस्कृति व सभ्यता जानने आये थे लेकिन यहाँ जीवन जीना एक अलग ही आंनद देने वाला है। यहाँ की संस्कृति जीवन को नया आयाम देने वाली है। हमने यहाँ होली खेली और बहुत अच्छा लगा ।
साध्वी ऋतम्भरा का संदेश
भारतीय संस्कृति व कान्हा के प्रेम रंग में सराबोर होते विदेशी बच्चों को देख साध्वी ऋतंभरा ने कहा कि यह दो संस्कृति और सभ्यता का मिलन है। पश्चिम के लोगों को भारत के प्रति भारी आकर्षण है। हमारी संस्कृति और हमारा ज्ञान सबसे खूबसूरत चीज है। सबसे बड़ी भाषा प्रेम की भाषा होती है और प्रेम के लिए किसी भाषा की जरूरत नहीं होती है। बच्चों ने होली खेली। ब्रज का सबसे बड़ा रंग तो होली का रंग है। यह प्रेम का रंग है। निष्काम प्रेम करेंगे, जिसमें एक न एक दिन पूरी दुनिया को रंगना ही होगा। तभी सारी मनुष्यता आनंद पाएगी, सुख पाएगी। हमारी अतिथि देवो भव की संस्कृति सबके दिलों को छूती है। मुझे लगता है कि सारी दुनिया एक परिवार बने, एक दूसरे के हो जाएं, हम दूसरों के आंसू पोंछने में सार्थक हों और यही संदेश आज के कार्यक्रम से मैं सारी दुनिया को देना चाहती हूँ ।

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