मथुरा

परिक्रमा हादसाः मौन साध गये यमुना पर ‘आंदोलन-आंदोलन’ खेलने वाले

-प्रशासन ने यात्रा संयोजकों तो बदले में यात्रा संयोजकों ने प्रशासन को दे दी क्लीन चिट।-मान मंदिर बरसाना ने भी साधी चुप्पी, पद्मश्री रमेश बाबा ने प्रशासन को दी क्लीनचिट।-खुद मान मंदिर ने यमुना शुद्धिकरण के लिए चलाया था बड़ा आंदोलन।

मथुराOct 25, 2019 / 10:15 am

suchita mishra

मथुरा। यमुना शुद्धिकरण के लिए आसमान सिर पर उठा लेने वाले यमुना भक्त भूमिगत हो गये हैं। बात-बात पर आंदोलन आंदोलन खेलने की इनकी आदत भी छूट गई है। मान मंदिर बरसाना के संत रमेशबाबा की राधारानी ब्रजयात्रा में इतना बड़ा हादसा हो गया जिसमें प्रशासन की लापरवाही, यात्रा संयोजकों की अदूरदर्शिता और यमुना की विषाक्तता सब सामने आ रही है। लेकिन यमुना की पीर पर अब पसीजने वाला कोई नजर नहीं आ रहा है। यहां तक कि जिस मान मंदिर बरसाना ने यमुना आंदोलन के इतिहास में सबसे बड़ा बखेड़ा किया वह भी यमुना की विषाक्तता और लापरवाही पर चुप्पी साधे है।
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नाव से पार क्यों नहीं कराया?
हजारों श्रद्धालुओं की जान जोखिम में डालने वाले इतने बड़े वाक्ये को इतने हल्के में लिया जा रहा है जैसे कुछ हुआ ही नहीं। 13 हजार परिक्रमार्थी रस्सी के सहारे यमुनापार कर रहे थे। खुद यात्रा संयोजक सुनील सिंह ने यह कई बार स्वीकार है कि हरियाणा प्रशासन से पांच दिन तक लगातार संपर्क में रहे और प्रशासन आश्वासन देता रहा कि यमुना पर यात्रा के लिए वैकल्पिक पुल की व्यवस्था करा दी जाएगी। पुल की व्यवस्था नहीं हो सकती थी तो श्रद्धालुओं को स्टीमर या नावों के द्वारा यमुना पार कराई जाती।
ऐसा भी संभव नहीं था तो 13 हजार श्रद्धालुओं की जान जोखिम में डालने से बेहतर था कि इस यात्रा को आगे बढ़ने से यहीं रोक दिया जाता। वैसे भी यह यात्रा कोई सदियों पुरानी सनातन परंपरा नहीं रही है, जिसे रोका ही नहीं जा सकता था। अपने आर्थिक लाभ, शिष्यों की संख्या बढ़ाने, प्रभाव बढ़ाने और शिष्यों को सततरूप से खुद से जोड़े रखने के लिए तमाम भागवताचार्यों, मंदिरों, मठों और संतों ने इस तरह की वार्षिक ब्रज चैरासी कोसी यात्राओं की शुरुआत करा दी है। इन यात्राओं में इनसे जुड़े लोग ही सामिल होते हैं। जयगुरूदेव आश्रम वर्ष में दो बार मेला लगाता है। यह उपक्रम भी अपने अनुयायियों को खुद से जोड़े रखने का ही एक प्रयास है और इस तरह की शोभायात्राएं भी।
जिम्मेदार कौन?
हजारों श्रद्धालुओं की जान जोखिम में डालने के लिए यात्रा संयोजकों पर किसी तरह की कोई कार्यवाही प्रशासन की ओर से नहीं की गई है। इसकी एवज में यात्रा संयोजकों ने प्रशासन को क्लिीनचिट दे दी है। अगर किसी ओर से भी कार्यवाही होती तो यह कार्यवाही दोहरी होनी थी। ऐसे में हजारों श्रद्धालुओं की जान जोखिम में डालने के जोखिम को कम करके आंका गया है। इतना ही नहीं जिन दो श्रद्धालुओं की मौत हुई है, उनका जिम्मेदार कौन है इस पर भी सभी मौन साध गये हैं।
डूबने पर पेट में पानी का भर जाना आचमन कैसे?
यात्रा संयोजक सुनील सिंह ने खुद कई बार यह स्वीकार किया है कि रस्सी के सहारे यात्री यमुनापार कर रहे थे। इसी दौरान कुछ की लम्बाई कम थी, कुछ कमजोर और वृद्ध थे। ऐसे में वह डूबने लगे और यमुना का पानी उनके मुंह में चला गया। इसी तरह से किसी के पेट में पानी के चला गया। हर ओर से इसे आचमन से श्रद्धालुओं के बीमार होने की बात कह कर प्रचारित प्रसारित किया जा रहा है। पेट में पानी भरना आचमन कैसे हो सकता है?
चिकित्सक बता रहे फूड पॉइजनिंग, प्रशासन ले रहा खाने के नमूने
हद तो तब हो गई जब इस घटना को पहले फूड पॉइजनिंग कह कर नकारने का प्रयास किया गया। प्रशासन ने यात्रा के दौरान दिये जा रहे भोजन के नमूने लिए। यमुनाजल के नमूने लेने की भी नमूनागीरी की गई। जबकि यमुना का जल कितना विषाक्त है इस पर तामाम रिपोर्ट पहले से ही मौजूद हैं।

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