माना जाता है कि 400 से अधिक वर्ष पूर्व विक्रम संवत 1623 में रामपुरा से राजपूत सरदार श्यामसिंह अपने परिवार के साथ यहां बसे। उन्हीं ने स्थान पर गढ़ बनाकर अपने नाम के अनुसार इस स्थान का नाम श्यामगढ़ रखा। जो आज शामगढ़ के नाम से जाना जाता है। वर्ष 1946 के बाद स्वण् वैद्य बालाराम चौहान ने मंदिर का समुचित विकास उस समय समिति का गठन करवा कर पूरे मंदिर में कांच जड़वाए। यह कांच के मंदिर के नाम से पूरे जिले में प्रसिद्व है। नगर परिषद प्रतिवर्ष अक्षय तृतीया से मां के नाम से पशु मेला आयोजित करती है। वर्तमान में प्रशासन के हाथों में इसकी देख रेख है। दोनों नवरात्रि ऊपर महानवमी के दिन शाम को महाआरती के बाद भंडारे का आयोजन किया जाता है। मंदिर की प्रसिद्धि के चलते यहां विकास की बहुत संभावनाएं हैं। मंदिर नव निर्माण को लेकर प्रशासन एवं जनसहयोग से करोड़ों रुपए की लागत से बनाया जाएगा। मां का मंदिर उसको लेकर जल्द ही मंदिर नव निर्माण का समिति रूपरेखा तैयार की।
अहमदाबाद से आया मंदिर का मॉडल
शारदीय नवरात्रि के पहले दिन मंदिर का कांच में जड़ा मॉडल अहमदाबाद से मंदिर लाया गया। जो भक्तों को अवश्य का केंद्र है। पंडित बगदीराम योगी ने बताया कि मां महिषासुर मर्दिनी देवी माता मंदिर में नवरात्रि पर विशेष श्रृंगार प्रत्येक दिन एवं मंदिर को रंग बिरंगी लाइटों से सजाया जाता है।