लच्छा बना मंदसौर की पहचान, देशभर में सुख-दुख में होता है उपयोग
मंदसौर.
यूं तो मंदसौर की अपनी एक अलग पहचान है। लेकिन यहां बनने वाला लच्छा भी प्रदेश ही नहीं बल्कि देशभर में भी अपनी पहचान रखता है। इतना ही नहीं विदेशों तक भी सप्लाई हो रहा है। १०० से अधिक परिवारों के ५०० से अधिक लोगों के लिए लच्छा बनाना रोजगार का बड़ा केंद्र बन गया है। देशभर में सुख-दुख से लेकर हर धार्मिक गतिविधियों में मंदसौर का लच्छा उपयोग हो रहा है। त्यौहारी दौर में इसकी अधिक सीजन रहती है। कच्चे सुत से लच्छा तैयार कर इस इंदौर, उज्जैन व अजमेर की मंडियों के माध्यम से इसे देशभर में भेजा जाता है। त्यौहारी समर में शहर में तैयार लच्छे की मांग खास होती है। आत्मनिर्भरता के साथ यह रोजगार का बड़ा माध्यम भी बन गया है। कई परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी यह काम कर रहे है।
हुनर वाले हाथों ने सूत के धागे को देशभर में दिलाई पहचान
मंदसौर में लच्छा बनाने का काम १०० परिवारों के लोग पीढ़ी दर पीढ़ी करते आ रहे है। कच्चे सुत को हुनर भरे हाथों से इन लोगों ने लच्दे और रक्षासुत्र के रुप में देशभर में पहचान दिलाई है। सफेद सूत का यह धागा लच्च्छे के रुप में बदलने के बाद आम धागा नहीं बल्कि लच्छा जिसे रक्षासूत्र कहते है। वह बन जाता है जो हाथों की कलाई पर बांधने से लेकर धार्मिक कार्यक्रमों में भगवान को चढ़ाया जाता है तो पूजा-अर्चना में इसका उपयोग भी किया जाता है। इतना ही नहीं मंदिर से लेकर दरगाह सुख से लेकर दुख हर जगह उपयोग में आने वाला यह लच्छा मंदसौर की भी एक पहचान बन गया है।
२०० सालों से बना रहे लच्छा खानपुरा के साथ मंदसौर की बना पहचान
मंदसौर के खानपुरा इलाके में हर घर में लच्छा बनाने का काम किया जाता है। यहां लकड़ी के हथोडा से धागे को पीटा जाता है और इसे लच्छे के रुप में तैयार किया जाताह ै। यह लच्छा मंदसौर की खानपुरा की पहचान होने के साथ लच्छा मंदसौर की भी पहचान है। यहां रहने वाले २०० से ज्यादा मुस्लिम परिवार के लोग सुबह से शाम तक घर का हर सदस्य क्या बड़ा क्या छोटा एक ही काम में लगा रहता है वो है लच्छा बनाने का और इन लोगों ने इस काम में बड़ी महारत हासिल कर ली है और हो भी क्यों नहीं पीढिय़ों से वह यही काम करते आ रहे है। पिछले दो सो सालो से इस समाज के लोग यह काम कर रहे है और अब इन्हें इस काम में महारत हासिल हो गई है। यहां बनने वालेलच्छे की मांग पूरे देश में हो गई है। और सबसे ज्यादा यहां से बना लच्छा गुजरात, आंद्रप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और पंजाब में भेजा जाता है।
रातभर गलाकर बनाते है लच्छा
लच्छा बनाने वाले मुजफ्फर पठान ने बताया कि सूत के इस सफेद धागे को रात भर पानी में गलाया जाता है। फिर अल सुबह लोहे के ड्रम में धागे को पानी में पिला रंग मिलाकर उबाला जाता है। फिर लालरंग के पानी में उबाला जाता है फिर ह रा और नीला रंग मिलाकर लच्छा बनाया जाता है। महंगाई के इस दौर में इन लोगों को इस काम में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। इस काम में मुनाफा भी दिनोंदिन कम होता जा रहा है।
कोमी एकता की पहचान बना लच्छा
लच्छा बनाने वाले सादिक गौरी ने बताया कि आंधप्रदेश के तिरुपतिबालाजी, महाराष्ट्र के शिर्डी के साई बाबा से लेकर राजस्थान की अजमेर शरीफ की दरगाह जैसे पवित्र स्थानों पर उपयोग आने वाला यह पवित्र धागा कोमी एकता की एक अनूठी पहचान है और यही लच्छा मंदसौर को भी एक अलग पहचान देता है।
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