लाड़ली के फॉर्म ने उलझाया
यहां से चलकर मेलखेड़ा चौपाटी पहुंचा तो बारिश शुरू हो गई। बचने के लिए दुकानों के शेड के नीचे खड़ा हो गया, जहां कुछ महिलाएं थीं। लाड़ली बहना के बारे में बात करने के लिए बिलकुल अनुकूल परिस्थितियां थीं। बात छेड़ी, तो उन्होंने लाड़ली के फायदे की कम फॉर्म भरने में आई दिक्कत की ज्यादा बात की। बोलीं कई बार चक्कर काटने पड़े। यहां दुकान संचालक ने कहा कि इस चौपाटी पर एक भी नल कनेक्शन नहीं है। आगे साठखेड़ा में चाय की दुकान पर रामगोपाल धाकड़, देवीकिशन रावत, खुर्शीद अहमद, देवालील चौधरी से बिना परिचय दिए समस्या पूछी तो बोले सरकार तो योजनाएं दे रही है, लेकिन लागू नहीं करवा पा रही है। 54 शौचालयों के रुपए नहीं आए हैं। अधिकारी टरका देते हैं। पीएम आवास भी मिलना चाहिए। यहां से मैं बरखेड़ा गांगासा पहुंचा। यहां पर कुछ युवा बात कर रहे थे। सबसे बड़ी मांग के बारे में पूछे जाने पर चित्रेश ने कहा कि गरोठ को जिला बनाना चाहिए। यह सबसे बड़ी मांग है। गरोठ जिला बने तो समस्या दूर हो। रोजगार की व्यवस्था होनी चाहिए। इसके बाद मैं गरेाठ की ओर निकल पड़ा। यहां एक बाइक सवार पंकज ने भी कहा कि सालों से चली आ रही गरोठ को जिला बनाने की मांग को पूरा करना चाहिए।
ड्रम की नाव की सवारी की मजबूरी
इसके बाद मैं सुवासरा विधानसभा क्षेत्र से रूबरू होने निकल पड़ा। इसमें गांव बनी में पहुंचा तो यहां मनोहरसिंह, कालूसिंह, कमलदास बैरागी, किशनलाल, कन्हैयालाल बोले किसान समस्याओं से जूझ रहे हैं। उपज के अच्छे भाव मिलना चाहिए। पेट्रोल-डीजल के भाव बहुत ज्यादा हो गए हैं। हर चीज मंहगी हो गई है। बारिश के मौसम में बापच्या गांव नहीं जा सकते हैं, क्योंकि पुल नहीं है। ड्रम की नाव बनाकर जाना पड़ता है।
परेशानी नहीं, लेकिन लाभ भी नहीं
वहीं कुरावन में गोपाल मालवीय का कहना था कि परेशानी नहीं है, लेकिन योजनाओं का लाभ मिल रहा है। यहां से बसई जाकर रुका। यहां विनय ने कहा कि बसई में लहसुन को लेकर फूड प्रोसेसिंग की योजना चल रही थी। लेकिन वह कहीं गुम हो गई। वह आती तो रोजगार मिलता और किसानों को फायदा भी होता। इसके बाद छोटी काशी कहे जाने वाली सीतामऊ नगरी की ओर निकला। यहां किसान रघुवीर सिंह और अमरलाल से बात हुई तो उन्होंने कहा कि बीज के भाव तो बढ़े हुए रहते हैं, लेकिन जब हम उपज बेचते है तो कम हो जाते हैं। अभी अलसी आधे भाव में बेचनी पड़ी। कैसे किसान की आय दो गुना होगी। उपज के भावों को लेकर कोई नहीं बोलता है। किसान दुखी है।
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