विद्या का दान है संसार का सबसे बड़ा दान
धर्मसभा का हुआ आयोजन
मंदसौर । इस संसार में आप अन्य कोई भी दान कर लो, लेकिन संसार का सबसे बड़ा दान विद्या का दान होता है। यदि आप किसी को भोजन का दान कर रहे हो, तो इससे उसके एक या दो टाईम की समस्या हल होगी, लेकिन किसी को विद्या का दान कर रहे हो, तो इससे सामने वाले के जीवनभर की समस्या हल हो सकती है। इसलिए अपने जीवन काल में एसे दान भी करिए, जिससे की किसी को विद्या प्राप्त हो सके और इसी विद्या के ज्ञान से वह अपने व अपने परिवार का जीवनभर गुजर-बसर कर सके। यह बात गौतममुनिजी मसा ने कहीं। वे शनिवार को शहर के खानपुरा स्थित एक निवास पर धर्मसभा में बोल रहेथे। उन्होंने कहा कि अचिंतन करना ही सुख का द्वार है। संसार की प्रत्येक आत्मा सुख साता चाहती है, लेकिन सुख साता मिलेगी कैसे। इसके लिए आपको दूसरों का साता देना होगी। यदि आप दूसरों का साता दोगे तो खुद भी साता प्राप्त करोगे। क्योंकि संसार का नियम है, कि जैसा बोओगे वैसा ही काटोगे। यदि आप गृहस्थ जीवन में हो तो तो इन बातों का अवश्य ध्यान रखें, कि एसा व्यापार करें, जो कर्मों का खाता कम करें। हमेशा अपना दरवाजा जरूरतमंदों के लिए खुला रखें। क्योंकि जहां जरूरतमंदों की सेवा के लिए रास्ता खुला होता है, वहां लक्ष्मी हमेशा निहाल करती है। शरीर हमेशा निरोगी रखें।
धन आए तो दु:ख, धन जाए तो दु:ख।
उन्होंने कहा कि पत्नी आज्ञाकारी होना चाहिए जैसे कौशल्या, सीता और द्रोपदी। इसी तरह बेटा भी आज्ञाकारी होना चाहिए जैसे राम, भरत, कृष्ण। बड़ी ही मुश्किलों से श्रावक को जिन शासन का सानिध्य मिलता है। यूं तो संसार में अनेक धर्म है, लेकिन धर्म तो वह होता है जो आत्मा को तार दे। आधुनिकता में मोह का तांता इस कदर फैला हुआ है, कि धन आए तो दु:ख, धन जाए तो दु:ख। तपोविभूति वैभवमुनिजी, मधुर गायक शालीभद्र मुनिजी। गर्वित मारू ने भजन प्रस्तुति दी। व्याख्यान के दौरान नपाध्यक्ष प्रहलाद बंधवार, अनिता दीदी, ईश्वर रामचंदानी, रवि रांका, अशोक झेलावत, आशीष बोथरा, कपील भंडारी, मनोहरलाल सोनी, प्रताप मारू उपस्थित थे। संचालन अजीतकुमार नाहर ने किया। आभार अशोककुमार मारू ने किया।