वहीं, इस डैम से बिजली का उत्पादन भी होता है। 115-मेगावाट बिजली के उत्पादन के लिए 23-23 मेगावाट क्षमत की पांच टरबाइन लगी है। इस बार डैम फुल होने के बाद हाइड्रो पावर यूनिट में भी पानी घुस गया है। जिसकी वजह से बिजली उत्पादन ठप है। यहां से उत्पादित बिजली जिले की जरूरतों को पूरा करती ही है, साथ में राजस्थान के भी कुछ हिस्सों में यहां से बिजली सप्लाई होती है।
वहीं, बिजली उत्पादन के बाद जो पानी छोड़ा जाता है, वह कोटा बैराज में जाता है। जिसका प्रयोग सिंचाई के लिए होता है। इस बांध का जलाशय क्षेत्र हीराकुंड जलाशय के बाद भारत में दूसरा सबसे बड़ा है। इसके साथ ही गैर प्रवासी पक्षियों का यहां जमावड़ा भी यहां लगता है।
चंबल रिवर वैली डेवलपमेंट को आजादी के बाद 1951 में भारत सरकार द्वारा शुरू की गई पहली पंचवर्षीय योजना के ऐतिहासिक कार्यों में से एक को चिह्नित किया। उस वक्त तक चंबल नदी विकसित नहीं हुई थी। फिर मध्यप्रदेश और राजस्थान की राज्य सरकारों की संयुक्त पहल के तहत इसे विकसित करने का प्लान था। 1953 में तैयार किए तीन-चरणों के प्रस्ताव में जल-विद्युत उत्पादन प्रदान करने के लिए तीन बांधों का आह्नान किया गया था। उसके बाद गांधी सागर बांध और कोटा बैराज की नींव पड़ी।
इसके अलावा, बांध के पैर के एक बिजलीघर में 43 मेगावाट क्षमता के चार टर्बो जनरेटर से 172 मेगावाट की अतिरिक्त पनबिजली उत्पादन क्षमता प्रदान की जाती है। दूसरा चरण 1970 में पूरा हुआ। राणा प्रताप सागर बांध में उत्पन्न शक्ति को मध्य प्रदेश के साथ समान रूप से साझा किया जाता है, क्योंकि गांधी सागर बांध इस बांध में उपयोग के लिए संग्रहित पानी प्रदान करता है।
मंदसौर में आई है तबाही
अब जब गांधी सागर बांध ओवरफ्लो है तो मध्यप्रदेश के दो जिलों में भारी तबाही आ गई है। मंदसौर और नीमच के सैकड़ों गांव डूब गए है। शायद वर्षों बाद गांधी सागर डैम में यह स्थिति बनी है। रेस्क्यू के लिए वहां एनडीआरएफ और जिला प्रशासन की टीम तैनात मुस्तैदी के साथ डटी है। लेकिन स्थिति समान्य होने में अभी वक्त लगेगा। गांधी सागर बांध का विकराल रूप देख लोग सिहर जा रहे हैं।