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बूढ़े-बेबस माता-पिता का दर्द
‘मेरे बच्चा के शहीद होने से मैं और परिवार दाने दाने को मोहताज हो गया। मेरे से अब कोई काम नहीं होता, न मजूरी कर सकता, आवास नहीं मिला, घर-मकान नहीं बना, मिट्टी की कच्ची दीवार है वो भी गिर रही है। चार साल में न सरकार से दो पैसे का सहारा मिला और न ही नुकसानी का । हमें लगता है हमार बच्चा नहीं गया हम ही मर गए। ये व्यथा है कोहनी गांव में रहने वाले बूढ़े पिता रुपलाल उरैती की। रुपलाल के बेटे ने पुलिस की नौकरी के दौरान अपने सीने पर डकैतों की गोली खाई और शहीद हो गए। बेटे की शहादत को चार साल गुजर चुके हैं लेकिन न तो कोई सरकारी मदद मिली है और न ही किसी ने उनकी सुध ली है। बुजुर्ग रुपलाल उरैती ने बताया कि उनके परिवार की आर्थिक हालत बेहद खराब है. पत्नी के पैर का ऑपरेशन होने के कारण चलने में दिक्कत होती है आंखों में भी कम दिखता है और कुछ यही हाल उसका भी है। मोतियाबिंद होने के कारण एक आंखे से ही देख पाते हैं। किसी तरह बड़ा बेटा जगदीश मजदूरी कर पूरे परिवार का पालन पोषण कर रहा है।
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7 फरवरी 2017 को शहीद हुए थे आरक्षक अशोक
बुजुर्ग रुपलाल उरैती के बेटे अशोक कुमार गुना पुलिस में आरक्षक थे। चार साल पहले 7 फरवरी 2017 को कुख्यात बदमाशों को पेशी कराकर लौटते वक्त बदमाशों ने रास्ते में अशोक की बंदूक छीनकर उन्हें गोली मार दी थी जिससे वो शहीद हो गए थे। पिता रुपलाल बताते हैं कि बेटे की शहादत पर कई नेता, अधिकारी आए थे। आवास, सहायता राशि और न जाने कितने वादे किए थे। वक्त गुजरता चला गया और वादे भूला दिए गए न तो अभी तक कोई मदद मिली है और न ही कोई सहायता और हर बेटे के जाने के गम को सीने पर लिए घुट-घुटकर जी रहे हैं।
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