चौथी कक्षा तक पढऩे के बाद उन्होंने 13 साल की उम्र में स्कूल छोड़ दिया। फिर वह सूरत आ गए। उनके अंकल पहले से ही सूरत में डायमंड के व्यापार से जुड़े हुए थे। यहां आकर सावजी भाई उनके साथ जुड़ गए। यहां उन्होंने डायमंड ट्रेडिंग की बारीकियां सीखीं। इसी दौरान उन्होंने ठान लिया कि उन्हें एक बड़ा आदमी बनना है। फिर उनके भाई हिम्मत और तुलसी भी उनसे जुड़ गए। तब उन्होंने 1984 में अपना डायमंड बिजनेस शुरू किया। सात साल बाद उनके सबसे छोटे भाई घनश्याम ने उनको जॉइन किया।
उन्होंने कारोबार को आगे बढ़ाने के मकसद से मुंबई में एक कार्यालय खोला। और इसके साथ ही कंपनी ने अमरीका और यूरोप के विभिन्न देशों में डायमंड निर्यात शुरू कर दिया। पहले साल में ही कंपनी का निर्यात एक करोड़ रुपए तक पहुंच गया। इसके बाद उनकी कंपनी हरि कृष्णा एक्सपोट्र्स लगातार आगे बढ़ती गई। उनका यह कारोबार उन्हें कामयाबी के साथ शोहरत भी दिलाता गया।
खास बात यह है कि वह कर्मचारियों का खास ध्यान रखते हैं। उनका अपने कर्मचारियों में पूरा विश्वास है। दिवाली पर कर्मचारियों को कार और गिफ्ट देकर ही वह सुर्खियों में आए थे। इतना ही नहीं, उनकी कंपनी में कर्मचारियों को ट्रेनिंग भी दे जाती है, ताकि वे अपना काम बेहतर ढंग से पूरा कर सकें। यही नहीं, उन्होंने अपने बेटे को भी कड़ी ट्रेनिंग दिलवाई, जिससे वह पैसों और बिजनेस का महत्त्व समझ सके। उनका मानना है कि कर्मचारी खुश रहकर काम करेंगे तो यह कंपनी के लिए बेनिफिशियल होगा। आज सावजी भाई की कंपनी हजारों करोड़ रुपए की है।